बात अनुज के सिरियस होने या न होने की नहीं है ,जैसे ही कोई कविता,कृति सार्वजनिक हो जाती है तो वह व्यक्तिगत सन्दर्भ खो देती है ,सर्वजन को समालोचना का अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाता है, और हाँ , कृतिकार को अपनी ओर से अब पाठकों को कोई स्पष्टीकरण देने का अधिकार नहीं होता, यही लेखकीय दायित्व है जिसे हर लेखक को निभाने के लिये तैयार रहना होता है .वह कृति अब लेखक के नाम की होने के बाद भी सार्वजनिक संपत्ति हो ही जाती है . लेखक इस दायित्व को भोगता है ,एक न्यायाधीश की तरह जो फैसला घोषित कर देने के बाद केवल उस फैसले की आलोचना ,समालोचना भोगता है ,चुपचाप .
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