मुझे पूरा पूरा ध्यान है -पूर्व में मैं बिना किसी साज सजावट के अनायास बिना किसी बुलावे के खुले आसमान के नीचे बिना किसी परदे -आवरण के नाचने-कूदने,घूमने-फिरने निकल जाता था और जब जहां जितना चाहा बरस लिया - बिना लाग लपेट के बरसता था , मन से बरसता था ,कहने पर बरसता था , बे-मन का भी बरस जाता था - बरस लेता था-बरस देता था । जब जी चाहा बरसा । जहां जी चाहा सुस्ता लिया । जिससे जी चाहा मिल लिया । जिसको चाहा उससे जैसे चाहा मिल लेता था ।
अब मुझे क्या हो गया । अब मैं चारों ओर संकोच आदि -आदि से घिरा -दबा जा रहा हूँ ।
आज फिर बड़ी मुश्किल से बरसने की बात सोच रहा हूँ । पर सोच रहा हूँ अब और कम से कम अभी तो मेरे लिए बरसना बड़ा मुश्किल है , संभव नहीं लगता ।
और यदि इस स्थिति में कोशिश करूंगा तो बरसने की जगह फट जाऊंगा ।
आप जानते है न ,बादल बरसता ही अच्छा । फटा हुआ नहीं ।
अब मुझे क्या हो गया । अब मैं चारों ओर संकोच आदि -आदि से घिरा -दबा जा रहा हूँ ।
आज फिर बड़ी मुश्किल से बरसने की बात सोच रहा हूँ । पर सोच रहा हूँ अब और कम से कम अभी तो मेरे लिए बरसना बड़ा मुश्किल है , संभव नहीं लगता ।
और यदि इस स्थिति में कोशिश करूंगा तो बरसने की जगह फट जाऊंगा ।
आप जानते है न ,बादल बरसता ही अच्छा । फटा हुआ नहीं ।
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