Monday, 30 December 2024

Sunday, 29 December 2024

 मुझे मेरा राजीव लौटा दीजिए, मैं लौट जाऊंगी, नहीं लौटा सकते तो मुझे भी इसी मिट्टी में मिल जाने दो: सोनिया गांधी।

ऐसा कहने बाली श्रीमती सोनिया गांधी जी के कार्य-कलापों पर नज़र डालें तो समझ में आ जाता है कि वो वास्तव में किस मिशन पर जुटी रही हैं। रूस के केजीबी एजेंट से लेके सोरोस से सांठगांठ तक की पोल खुल चुकी है

राजीव गांधी की हत्या तक सोनिया की पकड़ सिस्टम पर उतनी मज़बूत नहीं थी।

उसके बाद पीवी नरसिंहराव आ गए जो सोनिया गांधी को नज़र अंदाज़ करके अपना काम करते रहे।

1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान भी सोनिया एक तरह से लाचार रहीं।

लेकिन 2004 में दिल्ली की सत्ता हाथ आते ही सोनिया ने वो मिशन शुरू कर दिया जिसके इंतज़ार में वो तब से थीं, जब से भारत आईं।

2005 में सोनिया गांधी के दबाव में मनमोहन सरकार ने संविधान में 93वां संशोधन किया। इस संशोधन का मतलब था कि सरकार किसी हिंदू के शिक्षा संस्थान को कब्जे में ले सकती है लेकिन अल्पसंख्यकों और हिंदुओं की अनुसूचित जाति और जनजाति के संस्थानों को छू भी नहीं सकती।

दलितों और आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की सोनिया गांधी की ये सबसे बड़ी चाल थी। इसका असर यह हुआ कि किसी हिंदू के लिए शिक्षण संस्थान चलाना बहुत कठिन हो गया। चर्च की सलाह पर ही 2009 में सोनिया ने शिक्षा के अधिकार का कानून बनवाया। इसके जरिए आम शिक्षण संस्थानों में 25 फीसदी गरीब छात्रों को दाखिला देना जरूरी कर दिया गया जबकि दूसरी औऱ अल्पसंख्यक संस्थानों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। यहां तक कि उन्हें अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण देने से भी छूट दे दी गई।

सोनिया के दांव का घातक असर:

1

.पहले संविधान का 93वां संशोधन और फिर शिक्षा के अधिकार (RTE) के कानून के चलते ईसाई और मुस्लिमों के लिए शैक्षिक संस्थान चलाना बहुत सस्ता हो गया। दूसरी तरफ हिंदुओं के शिक्षण संस्थान बंद होने लगे।*

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों के कई मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज चलते हैं। उनके आगे जब संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने लिंगायत को हिंदुओं से अलग धर्म की मान्यता देने की मांग शुरू कर दी।

ऐसी ही मांग साईं भक्त समुदाय से भी उठने लगी। दरअसल ये सोनिया गांधी का दांव था जिससे देखते ही देखते हिंदू धर्म के अलग-अलग समुदाय खुद को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग करने लगे।

प्लान तो यहां तक था कि आगे चलकर कबीरपंथी, नाथ संप्रदाय, वैष्णव जैसे समुदायों को भी अलग धर्म की मान्यता देने की मांग को हवा दी जाए। इसी तरह के दांव से आजादी के समय कांग्रेस ने जैन, सिख और बौद्धों को हिंदू धर्म से अलग किया था।

दरअसल 2004 के बाद से सोनिया गांधी के इशारे पर कांग्रेस की सरकारों ने ऐसे कई फ़ैसले लिए जो वास्तव में हिंदू धर्म की रीढ़ पर हमला थे। हैरानी की बात यह रही कि इन सभी में मीडिया ने कांग्रेस को पूरा सहयोग किया।

2

राम सेतु पर हलफनामा:

2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि चूंकि राम, सीता, हनुमान और वाल्मीकि वगैरह काल्पनिक किरदार हैं इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है। जब बीजेपी ने इस मामले को जोरशोर से उठाया तब जाकर मनमोहन सरकार को पैर वापस खींचने पड़े।

3

हिंदू आतंकवाद शब्द गढ़ा:

इससे पहले हिंदू के साथ आतंकवाद शब्द कभी इस्तेमाल नहीं होता था। मालेगांव और समझौता ट्रेन धमाकों के बाद कांग्रेस सरकारों ने बहुत गहरी साजिश के तहत हिंदू संगठनों को इस धमाके में लपेटा और यह जताया कि देश में हिंदू आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। जबकि ऐसा कुछ था ही नहीं। कोर्ट में कांग्रेस की इन साजिशों की धज्जियां उड़ चुकी हैं।

4

सेना में फूट डालने की कोशिश:

सोनिया गांधी के वक्त में भारतीय सेना को जाति और धर्म में बांटने की बड़ी कोशिश हुई थी। तब सच्चर कमेटी की सिफारिश के आधार पर सेना में मुसलमानों पर सर्वे करने की बात कही गई थी।बीजेपी के विरोध के बाद मामला दब गया, लेकिन इसे देश की सेनाओं को तोड़ने की गंभीर कोशिश के तौर पर आज भी देखा जाता है।

5

चर्च को सरकारी मदद:

यह बात कम लोगों को पता होगी कि जहां कहीं भी कांग्रेस की सरकार बनती है वहां पर चर्च को सीधे सरकार से आर्थिक मदद पहुंचाई जाती है।इसका खुलासा कर्नाटक में RTI से हुआ था,जहां सिद्धारमैया सरकार ने चर्च को मरम्मत और रखरखाव के नाम पर करोड़ों रुपये बांटे थे।

6

शंकराचार्य को गिरफ्तार कराया:

2004 में कांग्रेस ने सत्ता में आते ही कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को दिवाली की रात गिरफ्तार कराया था।तब इसे तमिलनाडु की तत्कालीन जयललिता सरकार का काम माना गया था। लेकिन बाद में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में इस घटना का ज़िक्र किया, जिससे यह पता चला कि वास्तव में ये खेल केंद्र सरकार की तरफ़ से रचा गया था। शंकराचार्य धर्मांतरण में ईसाई मिशनरियों के लिए रोड़ा बन रहे थ।ेलिहाज़ा कांग्रेस ने उन्हें फँसाया था।

7

केंद्रीय विद्यालय की प्रार्थना पर एतराज़

ये 2019 का मामला है जब एक वकील के ज़रिए केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना के तौर पर ‘असतो मा सदगमय’ को बदलवाने की अर्ज़ी कोर्ट में दाखिल की गई थी।दावा किया जाता है कि इसके पीछे सोनिया गांधी का ही दिमाग़ था। 2014 से पहले अपने कार्यकाल में भी उन्होंने इसकी कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाई थीं।

8

दूरदर्शन का लोगो:

दूरदर्शन के लोगो मे से सत्यम शिवम सुंदरम को हटाया मनमोहन सरकार ने किसके इशारों पर, ये भी सभी जानते हैं।

9

FDL- AP और सोरोस से फंड

फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक (एफडीएल-एपी) फाउंडेशन की सह-अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी की पिछली भूमिका, जिसने कथित तौर पर कश्मीर की स्वतंत्रता के पक्ष में विचार साझा किए थे, चिंता का विषय है। इसके अतिरिक्त, पार्टी ने घरेलू मामलों में विदेशी प्रभाव के सबूत के रूप में राजीव गांधी फाउंडेशन और सोरोस से जुड़े संगठनों के बीच साझेदारी की ओर इशारा किया।

सोरोस द्वारा वित्त पोषित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के उपाध्यक्ष सलिल शेट्टी ने भारत जोड़ो यात्रा में भाग लिया। एक अन्य थ्रेड के माध्यम से, भाजपा ने पहले अमेरिकी विदेश विभाग पर सत्तारूढ़ पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के एजेंडे के पीछे होने का आरोप लगाया था। ओसीसीआरपी के वित्तपोषण का 50% सीधे अमेरिकी विदेश विभाग से आता है। ओसीसीआरपी ने डीप स्टेट एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक मीडिया टूल के रूप में काम किया है। एक पोस्ट में कहा गया कि डीप स्टेट का स्पष्ट उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाकर भारत को अस्थिर करना था।

अब समझ आ रहा है भले गांधी खानदान से देश के साथ धोखा अत्याचार किया हो पर गद्दारी उतनी नहीं की जितनी

सोनिया गांधी और राहुल गांधी मिल कर कर रहे है!

 यह समय हम सबों के लिए ईमानदारी पूर्वक आत्म निरीक्षण का है कि इस समाप्त होते वर्ष में हम ने क्या किया और अपने कर्मों से क्या पाया और क्या खोया ताकि नए वर्ष को अधिकाधिक अच्छा बनाया जा सके। 

मैं जानता हूॅं कि ईमानदार आत्मनिरीक्षण बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जान-बूझकर गलती नही करता है वल्कि फायदा के लिए अपनी समझ से जो उचित लगता है वहीं कार्य करता है। 

बस, ऐसे कार्यों का ही मुल्यांकन करना है। 

यह सच है कि यदि अपवाद को छोड़ दें तो मनुष्य स्वभावत: स्वार्थी होता है और अनुचित लाभ के लिए गलत काम कर बैठता है जो देर-सवेर विवाद पैदा कर देता है जिसके परिणामस्वरूप वह तनावग्रस्त हो जाता है तथा जितना वह प्राप्त करता है उससे ज्यादा वह गंवा देता है। 

इसलिए मैं हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने सभी रिश्तेदारों और संपर्कियों से आग्रह करता हूॅं कि वे स्थिर मन से बीत रहे पूरे वर्ष में अपने कार्यों का लेखा-जोखा कर नव वर्ष में इस संकल्प के साथ प्रवेश करें कि वे तुक्ष प्राप्ति के लिए कोई अनुचित कार्य नही करेंगे तथा अश्लीलता, उद्दंडता एवं अनुशासनहीनता का त्याग कर खुशहाल जीवन व्यतीत करने का प्रयास करेंगे।

Friday, 20 December 2024

 मोदी मोदी मोदी - सारी दुनिया मानो - मोदी जी से परेशान है ... मानो तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो सारा दोष - मोदी जी पर ही डाला जाएगा । सिर्फ राहुल परेशान नहीं है .. अमरीका .. चीन ..पाकिस्तान .. फिलिस्तीन .. जस्टिन ट्रूडो ..जॉर्ज सोरेस .. हमास ..आईएसआई .. खालिस्तानी .. आतंकवादी ..केजरी .. ममता .. अखिलेश ..लालू-भालू .. फारुख .. पूरा विपक्ष परेशान .....

बहुत लंबी लिस्ट है .. गिनती खतम ही नहीं होगी । .. ये आदमी है - या बवाल ..

और तो और ......गमलों में दो - दो करोड की गोभी उगाने वाले होनहार किसान भी परेशान .... मोदी नहीं था ...तो गमलों में भी दो करोड़ की गोभी उग जाती थी । अब वही होनहार गरीब किसान भी काजू-पिस्ता खाकर दिल्ली में सडक पर आंदोलन कर रहा है --

राहुल की थाईलैंड यात्रा बंद .... उनके जीजा का जमीन का कारोबार बंद ...माताजी की गुप्त मेडिकल यात्रा बन्द ...

सेना के जवानों पर पत्थर फेकने वाले परेशान है । कहां तो पत्थर फेकने के 500 रूपए मिलते थे ... अब गोलियां खानी पड रही है ।

पाकिस्तानी आंतकवादी भी आराम से कश्मीर घूमने आ जाते थे । एक बार तो - मुम्बई तक भी आ गए थे । अब हालात यह है कि अज्ञात लोग के निशाने पर खुद आतंकवादी है । उनको अपने ही घर से निकलने के लिए भी सोचना पड रहा है ।

नेहरू जी ने तो समय रहते - अपने हाथ से अपने गले में - मेडल डाल कर अपना सम्मान कर लिया था । भरोसा नहीं था कि - शायद बाद मे सम्मान शायद ना मिले । पर मोदी जी को अब तक 18 विदेशी " सर्वोच्च नागरिक सम्मान " मिल चुके हैं -- अब मोदी जी में पता नहीं सबको क्या दिखता है ??

इससे तो मनमोहन सिंह जी ठीक थे । किसी सम्मान का लालच नहीं था । खुद राहुल भी अगर सम्मान नहीं करें तो भी कुछ नहीं बोलते थे । जो बाहर से राष्ट्राध्यक्ष आते थे , वो भी मनमोहन जी को समझा कर जाते थे ..अब समझाते थे - या धमकाते थे - यह तो वही जाने ।

पाकिस्तान आराम से आतंकवादी भेजकर आंखें दिखाता था । पता था, मौनी बाबा फिर भी शान्ति प्रस्ताव ही भेजेगा । कश्मीर के नौजवानों को सेना पर पत्थर फेकने की आजादी थी । आजादी तो मानो भगतसिंह उनके लिए ही ले कर लाए थे ।

बहुत ही साहसिक फैसला मोदी जी ने लिया - जैसे .....

नोट बंदी भारत में करवा कर और आटे की लाइनें पाकिस्तान में लगवा दी । भारतवासियों को भले ही नोट बंदी समझ में ना आई हो पर पाकिस्तान को तो बहुत अच्छा समझ में आई । आतंकवादियों को पगार देना भारी पड़ने लगा ।

एक बात तो - मेरी समझ के भी बाहर है ।

जैसे यहां के मुसलमानो को मोदी बिल्कुल पसंद नहीं --- पर पाकिस्तानी मुसलमान कहते हैं -- काश हमें मोदी जैसा नेता मिला होता ।

पाकिस्तानी मानते हैं कि मोदी ने हिंदूओं के लिए बहुत कुछ किया है । पर यहां के हिंदू कहते हैं मोदी जी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया ।

अब बताओ -- मैं किस पर विश्वास करूं

आजादी के बाद 70 साल‌ से हमारे अपने देश में -- हमारे भगवान का मन्दिर नहीं था -- वो भी बना -- और स्थापना का सौभाग्य मोदी जी के हाथ में था । तो कई लोगों का जलना स्वाभाविक है ।

नया संसद भवन अपने कार्यकाल मे बनवाया -- तो जलन और बढ गई । इतनी बढ गई कि विपक्ष ने संसद भवन के प्रवेश समारोह का ही बहिष्कार कर दिया ।

सभी को लगता था कि कश्मीर से धारा 370 - कभी नहीं हट सकती । फारूख खुलेआम कहता था .... अगर 370 को हाथ लगाया तो कोई भारत का झंडा फहराने वाला कोई हाथ नहीं मिलेगा । पर झंडा भी लगा -- और झंडा फहराने वाले हाथ भी मिले । पाकिस्तान बिलबिला कर रह गया -- यूनाइटेड नेशंस भी कुछ नहीं कर पाया ।

1400 साल पुराने तीन तलाक के कानून को खत्म कराया । सोचा मुस्लिम औरतें बहुत खुश होंगी और मोदी को भर भर कर वोट मिलेंगे -- पर नहीं -- राहुल ने 8500 का झूठा लालच देकर दिखा दिया -- कि देखो -- कैसे कांग्रेस इस कौम को 70 साल से बेवकूफ बना रही है -- यह काम तो कांग्रेस बिना कुछ दिए भी करवा सकती है ।

राष्ट्रपति पद पर माननीय द्रोपदी मुर्मू को सम्मानपूर्वक आसीन किया कि लोगों मे विश्वास जगे कि -- मोदी जी देश के अंतिम पंक्ति में बैठने वाले लोगों का भी विशेष ध्यान रखते हैं । पर फिर भी कुछ लोग राहुल के झूठे बहकावे में आ गए । वरना जिस कांग्रेस पार्टी ने उनकी 60 साल में सुद नहीं ली । जिनके विकास के बिल " मंडल कमीशन बिल " को कांग्रेस ने रोका । उनको भ्रमित करके , कांग्रेस सत्ता में वापसी का सपना देख रही है ।

भूल तो 1984 के दंगों को सिख कौम भी गई । मानो उन्होंने स्वीकार कर लिया -- कि " बड़ा पेड़ जब गिरता है तो धरती तो हिलती है " इस एक लाइन के बयान से हजारों लोगों का खून माफ करवा लिया गया ।

अंत में , मैं इतना ही कि मोदी जी की देश भक्ति अतुलनीय है - निःसंदेह है ।




मुझे लगता था कि प्रबुद्ध वर्ग में मात्र गिने-चुने परिवार में ही अनुशासनहीनता आई है लेकिन संसद परिसर में घटित कल की घटना यह दर्शाती है कि अनुशासनहीनता अब राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है। किसी भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कोई व्यक्ति या दल के लिए आवश्यक नही कि वही सरकार बनावे। ऐसी सोंच प्रजातंत्र की नही वल्कि तानाशाह की होती है। यह सही है कि जिस दल ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को गुलामी से मुक्ति दिलाने हेतु काम किया वह कांग्रेस पार्टी थी। कांग्रेस का सत्याग्रह और आजादी के दीवाने  क्रांतिकारियों के क्रांति का संयुक्त प्रतिफल था जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने हेतु मजबूर किया। लेकिन आजादी के बाद क्रांतिकारियों को कभी पदलोलुप्ता नहीं रही और कांग्रेस पार्टी निर्वाध स्वतंत्र भारत में सरकार बना ली। उस समय कांग्रेसियों को सपने में भी ऐसा विश्वास नही था कि एक दिन कोई दूसरी पार्टी भी सरकार बना सकती है जिस कारण सरकार बनाने का अधिकार कांग्रेस पार्टी सिर्फ अपना समझने लगी थी लेकिन ऐसा हो न सका और धीरे धीरे सरकार गठन का काम कांग्रेस के हाथ से फिसलकर अन्य दलों के हाथ में चली गई जो अब कांग्रेसियों को पच नही रही है और येन-तेन-प्रकारेण सरकार बनाने के लिए वे कार्यरत प्रतिपक्ष को काम नही करने देने के उद्देश्य से तरह तरह के व्यवधान खड़ी करते रहते हैं। फिर भी जब उनकी दाल नही गली तो वे अब उद्दंडता पर उतर गए जिसका प्रमाण कल देखने को मिला। सभी उद्दंडों का यही ध्येय होता है कि वह अपने बाहुबल के सहारे दूसरों का अधिकार हनन करें। यही कारण है कि कल राहुल की अगुवाई में कांग्रेसियों ने प्रतिपक्ष के दो सांसदों को घायल कर दिया तथा एक महिला सांसद के साथ दुर्व्यवहार किया। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में इस तरह की घटना घटित होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस तरह किसी उद्दंड को सही मार्ग पर लाने के लिए प्रारंभ में ही उसका हाथ-पांव तोड़ कर सबक सिखाने की आवश्यकता है उसी प्रकार स्वस्थ्य प्रजातांत्रिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए उद्दंड नेतागण एवं उनके दल को चुनाव में मटियामेट करने की आवश्यकता है। भारत की जनता अब जागरूक हो गई है और वह सब जानती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि जो नेता या दल बाहुबल के सहारे सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं उन्हें भारतीय मतदाता ऐसा सबक सिखाएंगे कि उन्हें अपना बोड़िया-विस्तर बांध कर भारत से पलायन करने हेतु विवश हो जाना पड़ेगा वरना---? ये भारत की पब्लिक है; सब जानती है, दूसरा रास्ता भी अपना सकती है।

    "उद्दंडों के लिए बस एक ही सजा,

      हाथ-पांव तोड़ कर घर में बिठा।"

Friday, 13 December 2024

 जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में

तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके


विश्वनाथ प्रसाद 'शैदा' जी के दू गो रचना कालजयी ह । अइसे त उहां के लिखल अनेकन गो गीतन के तासीर साहित्यिक रुप से अतना पोढ आ गोट ह जवनन के तुलना कवनो भाषा के कालजयी रचनन से हो सकेला बाकिर तबो उ दुनो रचना, पहिला - बतावs चांद केकरा से कहाँ मिले जालs; आ दुसरका रचना - खुदा के भी घर बे बोलवले ना जाई । दुसरका गजल ह बाकि ह बड़ा शानदार । करेजा खखोर के राखि देला । माने कहल जाला कि जब अनुभव रुपी पथर प जिनिगी रगराले घिसाले त उ रीठा हो जाले, ठीक ओइसहीं शैदा जी के उ गजल रीठा ह ।


पिछला कुछ समय से किताब पढे लिखे के छुटल रहल ह, काम के व्यस्तता तनि बेसी हो गइल बा एह वजह से किताब के लमहर बैकलाग हो गइल बा आ डॉ उदय नारायण तिवारी जी के किताब ' भोजपुरी भाषा और साहित्य' फेरु से अझुरा देले बिआ, जवना के रोज एक दू पैरा पढ रहल बानी । बाकिर तबो, एहि में ओ‌डी मारत किताब, पत्र-पत्रिका के पढाई हो जाला ।


भोजपुरी में एगो पत्रिका ह 'परास' लमहर समय ले इ पत्रिका आपन छाप, भोजपुरी भाषा आ साहित्य प छोड़ले बिआ आ एह पत्रिका के संपादक हईं डॉ आसिफ रोहतासवी जी । इहां के खुद एगो बड़ा शानदार आ निठाह गजल लेखक हईं । एहि 'परास' पत्रिका के अप्रैल-जून-2010 अंक के पढत रहनी ह । असल में इ अंक कानू सान्याल के समर्पित बड़ुवे बाकिर पत्रिका के पहिला पन्ना पलटते जगन्नाथ जी के लिखल दू गो गजल पढे के मिलल ह । अउरी बहुत कुछ पढे के मिली एह पत्रिका में बाकिर हमार अंगुरी एह 44 पेज के पत्रिका में पेज नम्बर 29 प जा के रुक गइल ह आ फेरु पढे के मिलल ह, शैदा जी लिखल गजल ( खुदा के घर) के तेवर के समानांतर चले वाला एगो गजल । 


एह गजल के लेखक बानी रामेश्वर प्रसाद सिन्हा 'पीयुष' जी ।


गजल के पढीं -


कतनो हिया में बात के राखी छिपाइके

तबहूँ निकल ऊ जात बा ओठन प आइके


लागल कि मन फुहार में भींजी गतर-गतर

केहू गइल उमेद के बदरी उड़ाइ के


जिनिगी भ जे अन्हार में घुट-घुटके मर गइल

राखल बा का मजार प दीया जराइके


जेकरा कउल प हमरा भरोसा रहे बहुत

अचके मुकर गइल बा ऊ मंदिर में जाइके


कइसे कहीं, लगाव ना उनुका ले रह गइल

रिस्ता टिकल बा दोस्त से दुश्मन प आइ के


जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में

तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके


कइसन ह सुख सुराज के 'पीयुष' का कहीं

कुछ लोग लूट लेत बा तिकड़म भि‌डाइके


बहर कहीं मक्ता कहीं शेर कहीं जवन मन करे तवन कहीं बाकिर एह गजल के पढत घरी आ एकर माने बुझत घरी रउवा भोजपुरी भाषा आ साहित्य के तेवर के थाह लागी आ संगे संगे, एगो बिदेसी विधा में भोजपुरिया लेखनी के जबराट बाकिर मुलायम भाव रउवा सभ के पढे के मिली ।


परास पत्रिका के इ अंक भोजपुरी साहित्यांगन प लागल बा रउवा सभ एह अंक के ओजुगा से फोकट में डाउनलोड क के पढ सकेनी , अउरी बहुत कुछ बा ओह में जवनन के पढि के आपन विचार राखि सकेनी ।


एहि पत्रिका में कानू सान्याल प लिखत राजकमल चौधरी के एगो बड़ा शानदार हिंदी रचना के जिक्र बा जवन, हमरा निजी रुप से बड़ा जबरजस्त आ शानदार लागल । उ हिन्दी रचना ह -


आदमी को तोड़ती नही हैं लोकतांत्रिक पद्धतियाँ

केवल पेट के बल उसे झुका देती हैं

धीरे-धीरे अपाहिज

धीरे-धीरे नपुंसक बना लेने के लिए

उसे शिष्ट राजभक्त

देशप्रेमी नागरिक बना लेती है

आदमी को इस लोकतंत्री संसार में

अलग हो जाना चाहिए ।


राजकमल जी के एह पंक्तियन के पढला के बाद अब एक हाली फेरु से रामेश्वर प्रसाद सिन्हा जी के उपर के गजल के अंतिम दू गो शेर के पढीं -


जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में

तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके


कइसन ह सुख सुराज के 'पीयुष' का कहीं

कुछ लोग लूट लेत बा तिकड़म भि‌डाइके


भोजपुरी भाषा आ साहित्य के विकास खातिर, भोजपुरी में लिखत पढत रहीं । भोजपुरी, बड़हन भूभाग के भाषा ह एह से ओह बड़हन भूभाग प एह भाषा के तेवर आ ताव बना के राखे खातिर एह में लिखल पढल जरुरी बा ।


- नबीन कुमार

Sunday, 10 November 2024

 उन्हें बताओं वो दुनिया ख़रीद लाए हैं

जो बूढ़े बाप का चश्मा ख़रीद लाए हैं


वो अपने बेटों को बाईक दिलाने वालें थे 

सो हम भी बेटी का बस्ता ख़रीद लाए हैं


उसी का दर्द हमे मरहमो से प्यारा है

हम अपना बेच के जिसका ख़रीद लाए हैं


हमारे घर में अधेंरा नज़र नहीं आता 

ये चंद सिक्कों में हम क्या ख़रीद लाए हैं


ज़मीन बेचने वालों को ये नहीं मालूम

वो दरिया बेचके क़तरा ख़रीद लाए हैं


किताब लाए है हम अपने कुछ बुज़ुर्गों की 

हम अच्छे अच्छों से अच्छा ख़रीद लाए है 


किसी के हिज्र में आँसु बहाने वाले हम 

किसी से मिलने का सपना ख़रीद लाए हैं


Tuesday, 27 August 2024

 मित्रों,

 एक फिल्म है "चाइना गेट"।शायद आप सब लोगों ने ये फिल्म देखी होगी। इस फिल्म का एक सीन है, जब जगीरा डाकू अपने पूरे गिरोह के साथ देवदुर्ग गांव पर धावा बोल देता है। जगीरा गांव के बीचों-बीच खड़े होकर गांव के मुखिया को ललकार लगाता है कि वो कल तक जगीरा से जंग जारी रखने की बातें कर रहा था, अगर मुखिया के अंदर जरा सी भी हिम्मत है तो वो सामने आए और उससे मुकाबला करे।


उधर मुखिया हाथ मे एक कुल्हाड़ी लेकर जगीरा से भिड़ना चाहता है लेकिन उसकी पत्नी रोक देती है। इस बीच कुछ गांव वाले भी वहाँ आ जाते हैं और मुखिया को बताते हैं कि डाकुओं ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया है। उधर जगीरा बार-बार मुखिया को ललकारता रहता है कि बाहर निकल और मुझसे मुकाबला कर। काफी समय तक जब मुखिया बाहर नहीं निकलता तो जगीरा धमकी देता है कि अगर मुखिया बाहर नहीं निकला तो वो गांव की औरतों और बच्चों को काटना शुरू कर देगा।


इस धमकी को सुनकर मुखिया का खून खौल जाता है और वो कुल्हाड़ी पकड़कर जगीरा के सामने पहुंच जाता है। वह बड़ी हिम्मत दिखाकर जगीरा और उसके साथियों को ललकार लगाता है कि यदि उन्होंने अपनी मां का दूध पिया है तो एक-एक करके मुझसे भिड़ो। यह ललकार सुनकर जगीरा मुखिया की तारीफ करता है "जे बात, इस पूरे गांव में एक ही तो मरद मिला है जो जगीरा से भिड़ने की हिम्मत रखता है। अब लड़ने में मजा आएगा।" इतना कहकर वो अपनी बंदूक छोड़कर घोड़े से उतर जाता है और खंजर निकालकर मुखिया से भिड़ जाता है।


अचानक जगीरा मुखिया से कहता है कि तूने तो अकेले लड़ने की बात कही थी फिर अपने बिटवा को साथ क्यों लाया? जैसे ही मुखिया अपने बेटे को देखने पीछे घूमता है, वहां उसका बेटा नहीं होता। इतनी देर में जगीरा खंजर से गर्दन पर वार करके मुखिया का काम तमाम कर देता है। मुखिया को मारने के बाद जगीरा एक जबरदस्त डायलॉग बोलता है।


"उलटखोपड़िये हमसे भिड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे लेकिन हमारे जैसा कमीनापन कहाँ से लाओगे? मेरे मन को भाया, मैं कुत्ता काट के खाया। लोमड़ी का दूध पीकर पला है ये जगीरा, हमसे ना भिड़ियो।"


जब भी मैं रील लाइफ के इस जगीरा और उसके गिरोह को देखता हूं तो स्वतः ही मेरा ध्यान रियल लाइफ के जगीरा पप्पू  और उसके गिरोह इंडी गठबंधन की तरफ चला जाता है। यह व्यक्ति जगीरा से भी अव्वल दर्जे का कमीना है। जगीरा ने तो केवल बचपन मे ही लोमड़ी का दूध पिया था लेकिन इन मक्कारों के मुंह मे सुबह से शाम तक बस लोमड़ी के ही थन मौजूद होते हैं। आला दर्जे का मक्कार है ये।

बीच बीच में कुछ न कुछ टूलकिट ये लाता ही रहता है जब इसने सारे पैंतरे फेल हो गए तब इसे अहसास हुआ कि जब तक हिनू संगठित रहेगा तब तक सत्ता पाना असंभव है

इसलिए इसने हिनुओं को जातपात में बांटने का तोड़ निकाला है डिवाइड एंड रूल करो का ऐजेंडा चला रहा है

पहले जातिगत जनगणना की बात की अब ये नीइचता की पराकाष्ठा पर पहुंचते हुए हर स्तर पर जात पात की बात करनी शुरू कर दी है

ताजा मामला मिस इंडिया विजेताओं की जातियों का है 


भाजपा चाहे कुछ भी कर ले, अगर नैतिकता के प्रश्नों में उलझी रहेगी तो पप्पू और उसके गिरोह का कुछ भी नहीं उखाड़ पायेगी। और इसे खत्म करने के लिए इससे भी अव्वल दर्जे का कमीनापन और मक्कारी जरूरी है। वरना वो दिन दूर नहीं जब यही पप्पू मीडिया की खब्रांडियों के बलबूते भाजपा और देश का सबसे बड़ा सिरदर्द बनने वाला है। इन चार पांच सालों में यदि इसका बोरिया बिस्तर गोल ना हुआ तो फिर ये नहीं रुकेगा,इतना तय मानकर चलो।

Friday, 23 August 2024

 After four decades of relentless dedication to journalism, guided by a deep commitment to the larger cause of society, I have made the difficult decision to cease writing editorial pieces. The ideals of truth and justice I once upheld seem increasingly irrelevant in a society fractured along narrow caste and religious lines, where the masses are ever-willing to be swayed in any direction by those who exploit division for power. 


Politicians have perfected the art of drawing strength from vote bank politics and divisive agendas, leaving society fractured and vulnerable. Matters are further entrenched by a reservation and quota regime woven into our Constitution with no end in sight—a system that perpetuates division rather than unity. Corruption has metastasized like a cancer, with politicians presiding over a pyramid of pliable bureaucrats whose spines have turned to rubber, bending in any direction to serve their political masters. The entire government machinery and system is driven by the pursuit of money, perks, and comfortable sinecures as a large body of officers have long abandoned any sense of public duty or accountability.


It is with a heavy heart that I withdraw my voice from a discourse increasingly dominated by these corrosive forces. My conscience no longer allows me to engage in a conversation that has become a mere echo chamber of vested interests. The ideals that once inspired this journey have been drowned in the cacophony of short-sighted politics and societal decay.

Wednesday, 21 August 2024

 कृष्ण की  हर बात प्रभावित करने वाली है पर दो बाते मुझे अभिभूत  कर देती है एक  तो उनका अप्रतिम सौन्दर्य उनकी मुरली की तान जिसपर बेबस हैं ब्रज की गोपियाँ उनकी ओर खिंची चली आने को।कोई बंधन स्वीकार नहीं है उन्हे।हजारों हजार गोपियों के साथ उनका नृत्य और उसी समय में राधा जी के साथ उनकी रास लीला सबको लगता कि कृष्ण उन्हीं के साथ है।अलौकिक आनंद देने वाला।दूसरा जब कृष्ण पाण्डवों का दूत बन कर धृतराष्ट्र की राज सभा में पहुंचते है,पाण्डवों के लिए मात्र पाँच गाँव की माँग करते है और इंकार पर युद्ध का

आह्वाहन।कृष्ण धर्म के साथ अधर्म के विरुद्ध खड़े है।तटस्थता के प्रखर विरोधी है कृष्ण।अधर्म के साथ कोई अपना भी खड़ा हो उसके विरुद्ध भी हथियार उठाने की प्रेरणा देते है कृष्ण।धर्म की विजय के लिए युद्ध के नियमों की कभी कभी तिलांजलि देते हुये भी दीखते है कृष्ण।उनमें गजब का वाक्चातुर्य है सबको

पराजित सा करता और मोहता हुआ। ।इस भारत भूमि को एक बार और कृष्ण जरूरत है।

Wednesday, 14 August 2024

 एक सेठ-जी के पास एक ग्राहक कुछ समान लेने के लिए आया। उसने जितने का समान लिया उसमें 10 रूपये कम पड़ गए तो सेठ-जी ने कहा कुछ समान कम कर देता हूँ, हम उधार नहीं देते।


ग्राहक को सेठ-जी की बात बहुत ही बुरी लगी,


बोला कि मेरे घर में तीन-दिन से खाना नहीं बना


मेरा पूरा परिवार भूखा है और आपको रूपयों की पड़ी है।


सेठ-जी ने कहा 5 मिनट रूको, घर से सेठानी को बोलकर भोजन की एक शानदार थाली लगवाकर ले आए और बोले,


पहले भोजन करो तथा जाते समय कुछ भोजन बच्चों के लिए भी ले जाना।


उस व्यक्ति के जाने के बाद जब सेठ-जी के बच्चों ने पूछा पिता जी ये कैसा व्यवहार, 10 रूपये कम पड़ने पर तो


आपने उनका समान कम कर दिया और बाद में भरपेट भोजन तो करवाया ही साथ में और भोजन भी बांध दिया।


आखिर ऐसा क्यों....???


सेठ भी ख़ानदानी था बोला …… बच्चों हमेशा ये सीख याद रखना....


व्यापार करते समय, दया मत करो और


सेवा करते समय, व्यापार मत करो ||

 बहु ,ये मकान तुम्हारी माँ ने दहेज में तो नहीं दिया था ..............

धीरे-धीरे कदमों से चलती हुई मीना जी अपने घर की तरफ बढ़ रही थीं। उन्हें इस तरह लँगड़ाते हुए देखकर पड़ोस में रहने वाली सुजाता जी ने कहा,

"अरे दीदी! क्या हुआ? लगता है आपके घुटनों में दर्द ज्यादा है?"

"हां, उम्र का असर है, दर्द तो होता ही रहता है। दवाइयां लानी थीं इसलिए निकल कर गई थी, वरना घर पर ही आराम कर रही थी।"

"तो आप अकेले क्यों गई थीं दवाई लेने? राजू को ले जातीं।"

सुजाता जी की बात सुनकर मीना जी चुप हो गईं। आखिर कहतीं भी क्या कि बेटा उनके साथ नहीं जाता। पर सुजाता जी को तो उनके घर की सारी बातें पता थीं इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा और चुप हो गईं। आखिर बोल-बोलकर क्या किसी के दर्द को कुरेदना।


मीना जी वैसे ही लँगड़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ गईं। जैसे ही घर में घुसीं, देखा कि उनके कमरे का सामान ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो रहा था। एक पल के लिए वो तो सोच में पड़ गईं, पर फिर बोलीं,

"अरे, मेरा सामान ऊपर कहाँ शिफ्ट कर रहे हो? मेरा कमरा तो नीचे है ना?"

"है नहीं, था मम्मी जी। हमें उस कमरे की बहुत जरूरत थी। इस कारण से आपका कमरा ऊपर शिफ्ट कर रहे हैं।"

"पर मेरे घुटनों में दर्द रहता है। यूँ सीढ़ियाँ ऊपर-नीचे चढ़ना नहीं कर सकती बार-बार।"

"बाहर घूमने जाने में आपके घुटने में दर्द नहीं होता। ऊपर-नीचे होने में ही दर्द होता है। सब बहाने हैं, रहने दीजिए। आपको ऊपर वाले कमरे में ही जाना पड़ेगा।"

"पर बहू, मैं घूमने नहीं गई थी। मेरी दवाइयां खत्म हो गई थीं। मैं तो अपने घुटनों के लिए दवाई लेने गई थी।"

"देखिए मम्मी जी, मेरी बहन आ रही है। पूरे दो साल का कोर्स है तो दो साल तक वो यही रहेगी और उसे कमरे की जरूरत पड़ेगी इसलिए आपका कमरा खाली कर रहे हैं।"

"अरे, तो उसे ऊपर वाला कमरा दे दो। वो तो जवान है, आराम से ऊपर रह सकती है। मना थोड़ी ना कर रही हूं।"

"मेरी बहन उस छोटे से कमरे में रहेगी? मायके में मेरी भी कोई इज्जत है। और आप मुझे मना करने वाली कौन होती हैं? घर हमारा है। घर का खर्चा हम उठा रहे हैं। हमारा डिसीजन हम किसे कहाँ रखते हैं? ऊपर वाले कमरे से इतनी ही दिक्कत है तो आप बाहर वाले कमरे में रह जाइए। हमें कोई एतराज नहीं है।" बहू नैना ने बड़ी बेरुखी से कहा।


सुनकर मीना जी की आंखों में आंसू आ गए। बेटा राजू सामने ही था लेकिन वह तो बुत बना खड़ा तमाशा देख रहा था। एक बार भी उसने नैना को टोका तक नहीं। और बाहर वाला कमरा? वह तो स्टोर रूम था। मतलब अब मीना जी की ये हैसियत रह गई। बहू कबाड़ की तरह मीना जी को स्टोर रूम में रहने के लिए कह रही थी और नालायक बेटा सामने खड़ा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रहा था।


जबसे मीना जी के पति गए हैं तब से बेटा-बहू घर के सर्वेसर्वा बन गए हैं। माना कि घर में खर्चा करते हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि मां के स्वाभिमान को ही कुचल दें जबकि मकान अभी भी उन्हीं के नाम था। अपनी बहू की जबान से ज्यादा मीना जी को उनके बेटे की चुप्पी चुभ रही थी। आखिर बर्दाश्त के बाहर हो गया तो वह बोल पड़ीं,

"बहू, जब तुमने मेरा कमरा लिया था ये कहकर कि मम्मी जी हमें बड़े कमरे की जरूरत है, तब मैंने कुछ नहीं कहा। यह सोचकर चुप रह गई थी कि बेटे-बहू को क्या तकलीफ देना। दोनों मेरे अपने ही तो हैं। लेकिन आज, तुम मुझे स्टोर रूम में रहने को कह रही हो।"

"शुक्र मनाइए कि स्टोर रूम में रहने को कह रही हूं, वृद्धा आश्रम में नहीं भेज रही हूँ। एक तो हमारा ही खाती हो, ऊपर से हमें ही सुना रही हो।"

"बस करो बहू। बहुत बोल लिया तुमने। यह घर आज भी मेरा है। तुम यह मकान अपने दहेज में नहीं लाई थी। और हां, चुपचाप अपना कमरा भी खाली करो। मैं अपने कमरे में वापस शिफ्ट हो रही हूं।"

"अच्छा, घर का खर्चा हम कर रहे हैं तो आपकी दो बातें क्यों सुनें?"

"आज के बाद करने की जरूरत नहीं है। अगर इस घर में रहना है तो किराया दो। अन्यथा घर खाली करके चले जाओ। मैं किराएदार रख लूंगी। मेरे घर का खर्च मैं खुद निकाल लूँगी।"

"मम्मी, तुम अपने बेटे को इस घर से निकलने के लिए कह रही हो?"

"वाह बेटा! इतनी देर से तेरी बीवी जब मेरी बेइज्जती किए जा रही थी। मुझे वृद्धाश्रम छोड़कर आने की बात कर रही थी, तब तुझे सुनाई तक नहीं दे रहा था। और मैंने तुम लोगों से किराया देने को क्या कह दिया, तुम्हें सुनाई देने लगा। मुझे कुछ नहीं सुनना। अब तक यही सोचती रही कि काश एक दिन तुम लोग मुझे समझोगे पर वो दिन कभी नहीं आया। शायद मुझे अकेले रहने से डर लगता था। पर अब नहीं, अब यूँ बेइज्जत होकर साथ रहने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ अकेली ही रहूँ। अब जो भी निर्णय लेना है फटाफट लो और कमरा खाली करो। बस।"


ये सब सुनकर बेटा-बहू की हालत खराब हो गई। इतनी जल्दी कहां जाएंगे? दोनों फटाफट मां के पैरों में पड़ गए,

"हमें माफ कर दो मम्मी। प्लीज हमारे साथ ऐसा मत करो।" पर मीना जी ने मन पक्का कर लिया था। वे झुकने को तैयार नहीं हुईं। निरादर की दो रोटी से तो स्वाभिमान की एक रोटी भली। और भला काश के इंतजार में जिंदगी क्यों बितानी?

Qq


और आखिरकार राजू और नैना उसी घर में ऊपर वाले दो कमरों में शिफ्ट हुए और आज भी उसका किराया दे रहे हैं। जबकि नीचे का वह एक कमरा किसी और को मीना जी ने किराए पर दे दिया। रही बात नैना की बहन की तो वह हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है।

L1


Sunday, 4 August 2024

 समझदारी ये समझने में है कि पितृसत्ता स्त्रियों में मित्रता को खतम करता है। उसके विपरीत स्त्रियों में ईर्ष्या, प्रतिस्प्रधा व नफरत को बढ़ावा देता है। ये पितृसत्ता की व्यवस्था है।


शादी के बाद लड़कियाँ अपनी स्कूल-कॉलेज की सहेलियों से दूर हो जाती है। कोई कहाँ, कोई कहाँ। विदाई प्रथा व शादी की बंदिशों की वजह से स्त्रियों के जीवन में सहेली जैसा रहता नहीं कुछ।

पितृसत्ता में रिश्ते कुछ इस तरह बने हैं कि मित्रता तो दूर की बात है, रहती है तो सिर्फ ईर्ष्या, प्रतिस्प्रधा व नफरत - 

शादीशुदा सुहागन में विधवा या डिवोर्सी महिला के प्रति हीन भावना व नफरत

घरेलू महिला व कामकाजी महिला में प्रतिस्प्रधा व नफरत

परिवार में सास बहु, नन्द भाभी, देवरानी जेठानी में ईर्ष्या व प्रतिस्प्रधा व नफरत

मॉडर्न-पढ़ी लिखी महिला व देसी-अशिक्षित महिला में ईर्ष्या व नफरत


पितृसत्ता स्त्रियों को आपस में लड़वा कर ज़िंदा है, समझदारी इसे जल्द से जल्द समझने में है। 

#friendship #FriendshipDay

 हरियाणा में एक व्यक्ति बस यात्रा में साथ की सीट पर बैठी लड़की को हाथ लगा लगा कर या कोहनी से दबा दबा कर छेड़े जा रहा था

काफी देर तक तो वह लड़की शर्म लिहाज़ से चुप रही , पर जब लड़का बढ़ता ही गया तो लड़की ने कह ही दिया

न्यूऐं मान जावेगा कै पिट कै मानैगा 🧐🥱

लड़का अनजान सा भोलू बनकर पूछने लगा

🤔🤔🤔 मैने क्या किया

और यह सुनने के तुरंत बाद ही 🙆लड़की ने तडा़तड़ जूती से पांच सात लड़के के मुंह सिर पर धर दीं

और फिर लड़की बोली , अब तो समझ आ गया

या और अच्छी तरह समझाऊं

बस , फिर तुरंत लड़का बिना कुछ बोले चुप चाप चलती बस 🚍🚌🙏 से उतर फौरन निकल लिया

यही ट्रीटमेंट पप्पू की त्वचा को चाहिए, लक्षण तो बिल्कुल वही हैं और लिख लो ये एक बार अच्छे से इसी तरह का मेकअप करवा ले और साधारण कारावास तीन माह गर्मियों में भुगत ले बिहार के किसी कारागार में , तो आवाज नहीं नहीं निकलेगी अगले दस पंद्रह साल या फिर ये राजनीति छोड़ भागेगा

Sunday, 16 June 2024

 Borrowed


*सेक्स ओर आदमी*


आदमी सेक्स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है पशुओं की तो सेक्स की कोई अवधि होती है कोई पीरियड होता है वर्ष में आदमी की कोई अवधि न रही कोई पीरियड न रहा। 


आदमी चौबीस घंटे बारह महीने सेक्सुअल है सारे जानवरों में कोई जानवर ऐसा नहीं है कि जो बारह महीने और चौबीस घंटे कामुकता से भरा हुआ हो। उसका वक्त है उसकी ऋतु है वह आती है और चली जाती है। और फिर उसका स्मरण भी खो जाता है। 


आदमी को क्या हो गया? 

आदमी ने दबाया जिस चीज को वह फैल कर उसके चौबीस घंटे और बारह महीने के जीवन पर फैल गई है।


कभी आपने इस पर विचार किया कि कोई पशु हर स्थिति में हर समय कामुक नहीं होता। लेकिन आदमी हर स्थिति में हर समय कामुक है। जैसे कामुकता उबल रही है 

जैसे कामुकता ही सब कुछ है। 


यह कैसे हो गया? 

यह दुर्घटना कैसे संभव हुई है? 

पृथ्वी पर सिर्फ मनुष्य के साथ हुई है 

और किसी जानवर के साथ नहीं क्यों?


एक ही कारण है सिर्फ मनुष्य ने दबाने की कोशिश की है। और जिसे दबाया, 

वह जहर की तरह सब तरफ फैल गया। 


और दबाने के लिए हमें क्या करना पड़ा? 

दबाने के लिए हमें निंदा करनी पड़ी दबाने के लिए हमें गाली देनी पड़ी दबाने के लिए हमें अपमानजनक भावनाएं पैदा करनी पड़ीं। 


हमें कहना पड़ा कि सेक्स पाप है। 

हमें कहना पड़ा कि सेक्स नरक है। 

हमें कहना पड़ा कि जो सेक्स में है 

वह गर्हित है निंदित है। 

हमें ये सारी गालियां खोजनी पड़ीं 

तभी हम दबाने में सफल हो सके। 


और हमें खयाल भी नहीं कि इन निंदाओं और गालियों के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर गया।

 

नीत्शे ने एक वचन कहा है 

जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिला कर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी। 

सेक्स मरा तो नहीं सिर्फ जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो गई बात। 

वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है।


यह जो सेक्सुअलिटी है यह जहरीला सेक्स है। सेक्स तो पशुओं में भी है काम तो पशुओं में भी है क्योंकि काम जीवन की ऊर्जा है लेकिन सेक्सुअलिटी कामुकता सिर्फ मनुष्य में है। 


कामुकता पशुओं में नहीं है। 

पशुओं की आंखों में देखें वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी। आदमी की आंखों में झांकें वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखाई पड़ेगा। 

इसलिए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है। 


लेकिन दमन करने वाले पागलों की 

कोई सीमा नहीं है कि वे कहां तक बढ़ जाएंगे।

Saturday, 1 June 2024

 बहुत ही सटीक विश्लेषण 👇🤔


नदी से  -  पानी नहीं रेत चाहिए,

पहाड़ से - औषधि नहीं पत्थर चाहिए,

पेड़ से  - छाया नहीं लकड़ी चाहिए,

खेत से - अन्न नहीं नकद फसल चाहिए. 


उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,

काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़..


रेत से पक्की सड़क, 

पत्थर से मकान बनाकर, 

लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,

अब भटक रहे हैं.....!!


सूखे कुओं में झाँकते,

रीती नदियाँ ताकते,

झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,

बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम.!!


और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन,

फिर भी सब बर्तन खाली..

                                                         

सोने के अंडे के लालच में,

मानव ने मुर्गी मार डाली !!!

Sunday, 26 May 2024

Ramesh Kumar Rateria, Former Chairman Commercial Taxes Tribunal, Patna; former Director Bihar Judicial Academy, Former  District & Sessions Judge.

 


 

Sunday, 5 May 2024

 शरद पवार कमरे में बैठे हैं तभी ऊध्दव ठाकरे मुंह उठा कर चले आते हैं।

शरद पवार बिना सोफे से उठे तुरंत हाथ बाहर की तरफ दिखाकर कहते हैं जाओ तुम बाहर इंतजार करो।
फिर खिसिया कर मुंह बनाकर उद्धव ठाकरे कहते हैं मैं बगल के कमरे में आपका इंतजार कर रहा हूं।
अपनी इतनी घनघोर बेइज्जती ये बंदा करवा रहा है दो पैसे की इज्जत नहीं रही इसकी।
सोचिए जब बीजेपी के साथ था तब किस तरह से बीजेपी पर दादागिरी करता था और आज इसकी हालत देखिए।

Saturday, 4 May 2024

 Puja Chokhani Mumbai 

A/106 Shiv Parvati Building, off Chincholi Bunder road , malad west , mumbai -400 064

Monday, 29 April 2024

 लिखना है?


तो लिखो उस कुतिया की आँखों के बारे में जिसके पिल्ले का धड़ सड़क से गुज़र रहे टायरों में थोड़ा-थोडा चिपक चिपक कर साफ़ हो रहा है! 


लिखो उस शर्मिंदा हिजड़े के नाक के पसीने के बारे में जो सब कुछ होना चाहता है सिवाय एक हिजड़े के!


 तुम लिख सक

ते हो उस जवान हाथ की कंपकंपाहट जो ब्लेड लिए नस का॰टने के नफे-नुक्सान को तौल रहा है!


कभी लिखकर देखो उस चिड़िया के फडफडाते परों के बारे में जो एक चील को अपने सामने से अपना बच्चा दबोचते हुए देख रही है! 


या लिखो उस मुर्गे के कानों के बारे में जो ध्यान से सुन रहे हैं दो ग्राहकों की झटके और हलाल की डिबेट!


तुम लिखो एक झोपड़ी में रात भर चली फुसफुसाती अन्ताक्षरी को जो टूटी छत से पानी टपकने की वजह से हो रही है! 


किसी दिन उतार दो पन्ने पर, उस विकलांग की शर्म जिसने बाथरूम पहुँचते पहुँचते फर्श पर टट्टी कर दी है! 


तुम लिख कर देखो उस बाँझ आँख की चमक जिसे वाश-बेसिन में पड़ी उलटी में एक उम्मीद की रंगोली दिख रही है! 


चाहो तो उस ट्यूब-बेल की मोटी धार के बारे में लिख सकते हो, जो कुछ नंगे बच्चों के पिछवाड़े को चूम कर धान को सुनहरा बना रहे हैं!


लिखो शहर की सबसे ऊंची बिल्डिंग की रेलिंग पर खड़े एक हारे नौजवान की उड़ान, जो वो बस लेने वाला है! 


तुम लिखो आसमान में बिन-मौसम काले बादल देखते हुए एक किसान की बेबसी और वहीँ थोड़ी दूर पर खेत में मिल रहे एक नए जोड़े के चेहरे की बूँदें! 


या लिखो शमशान में एक कंधे पर गोल घूम रहे घड़े के छेद से गिरते पानी की छींटें जो सामने पड़ी आग में किसी को जगाने की कोशिश कर रही हैं! 


लिखो सब कुछ जो लिखना है मगर एक पतिविहिन औरत की दास्तान भी लिखो जिसके सारे सपने एक पल में धाराशाही हुए होंगे ,जब उसकी चूड़िया तोड़ी गई होगी,मांग का सिन्दूर मिटाया गया होगा......


लिख सकते हो तो लिखो उस बच्चे के भरोसे के बारे में जो छत से गोल घूम कर बस कूदने वाला है कि शक्तिमान आएगा!


और उन दोस्तों की ठिठोली के बारे में भी जिन्हें लग रहा है कि ये सिर्फ मज़ाक है! 


लिखो दूर पहाड़ से बड़े शहर आई अकेली उस बुढिया के बारे में जिसे अस्पताल में अकेले इलाज कराना, एक पूरा जंगल काटने से ज्यादा कठिन लग रहा है! 


लिखो उस भिखारी की फैली पुतलियों और अचानक उठे दर्द के बारे में जो सामने से आती एक बड़ी गाड़ी को देखकर बढ़ गया है! 


लिखो उस रिश्तेदार के भेडिये जैसे दांतों के बारे में जो एक लड़की को कमरे में अकेले सोते हुए देखकर लार चुवा रहे हैं! 


लिखो किसी गार्ड की बोरियत का बहीखाता जिसमे सुबह से एक हजार कार और दो हजार मोटरसाइकिल का डेबिट क्रेडिट हो चूका है! 


लिखो कुछ ऐसा जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया! लिखो क्यूंकि तुम्हारे पास बहुत सी कहानियाँ है आत्मा के हिडन फोल्डर में! 


लिखो,जिसको पढ़कर कोई वाह-वाह न करे! 

लिखो कि तुम्हारे लिखे का चर्चा न हो! लिखो बस कि अभी बहुत कुछ लिखना है तुम्हे!

Saturday, 9 March 2024

 भाय ( भाई) की शून्यता.........

                            

भाय के जाने की शून्यता, 

निश्चिंतता का गहरा अंधकार,

पर साथ है तेरा, 

मेरे जीवन की ज्यों की सूर्य का तेज।


भरोसे की छलांग, 

हर मुश्किल में जिनके हौसले लगाई,

आपका विश्वास, मेरे सपनों को जीने की बात,

मुझ पर किया हुआ एहसानहै, 

हर कठिनाई में बना रहा साथ आपका, यह उपकार।


आपका स्नेह, साथ बि, ताए हर पल।

संघर्षों के सफर, कोर्ट, गतिविधियों में शामिल होने का आदेश,

वो हाथ पकड़ कर पास बिठाना, 

"माथा आँगां कर" कह मेरे सिर को सहलाना।

जबान खोल, कोई नेवता तो नहीं देगा,

डरा मत कर, डरेगा तो लोग और डरायेंगे 

यह सब कह हिम्मत बढ़ाना. 

लगा जैसे आपने मान लिया आज ही है अन्त की घड़ी।


भाई तो हैं सभी पर भाय अब कोई नहीं,

दुख तो है ही आपके जाने का,

पर आपके जीवन का स्थापित मानदंड,

प्रेरित करता है हमे चलने को।


भाई ( भाय ) के आदर्श और उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीना

भाय के विप्लवी, सहयोगी मिजाज को समाहित करना।

भाई ( भाय )का जाना, जीवन की नई कहानी,

साथ है सच्चा विश्वास, चिर सजीव यह याद।


शब्दांजलि 🙏