जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में
तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके
विश्वनाथ प्रसाद 'शैदा' जी के दू गो रचना कालजयी ह । अइसे त उहां के लिखल अनेकन गो गीतन के तासीर साहित्यिक रुप से अतना पोढ आ गोट ह जवनन के तुलना कवनो भाषा के कालजयी रचनन से हो सकेला बाकिर तबो उ दुनो रचना, पहिला - बतावs चांद केकरा से कहाँ मिले जालs; आ दुसरका रचना - खुदा के भी घर बे बोलवले ना जाई । दुसरका गजल ह बाकि ह बड़ा शानदार । करेजा खखोर के राखि देला । माने कहल जाला कि जब अनुभव रुपी पथर प जिनिगी रगराले घिसाले त उ रीठा हो जाले, ठीक ओइसहीं शैदा जी के उ गजल रीठा ह ।
पिछला कुछ समय से किताब पढे लिखे के छुटल रहल ह, काम के व्यस्तता तनि बेसी हो गइल बा एह वजह से किताब के लमहर बैकलाग हो गइल बा आ डॉ उदय नारायण तिवारी जी के किताब ' भोजपुरी भाषा और साहित्य' फेरु से अझुरा देले बिआ, जवना के रोज एक दू पैरा पढ रहल बानी । बाकिर तबो, एहि में ओडी मारत किताब, पत्र-पत्रिका के पढाई हो जाला ।
भोजपुरी में एगो पत्रिका ह 'परास' लमहर समय ले इ पत्रिका आपन छाप, भोजपुरी भाषा आ साहित्य प छोड़ले बिआ आ एह पत्रिका के संपादक हईं डॉ आसिफ रोहतासवी जी । इहां के खुद एगो बड़ा शानदार आ निठाह गजल लेखक हईं । एहि 'परास' पत्रिका के अप्रैल-जून-2010 अंक के पढत रहनी ह । असल में इ अंक कानू सान्याल के समर्पित बड़ुवे बाकिर पत्रिका के पहिला पन्ना पलटते जगन्नाथ जी के लिखल दू गो गजल पढे के मिलल ह । अउरी बहुत कुछ पढे के मिली एह पत्रिका में बाकिर हमार अंगुरी एह 44 पेज के पत्रिका में पेज नम्बर 29 प जा के रुक गइल ह आ फेरु पढे के मिलल ह, शैदा जी लिखल गजल ( खुदा के घर) के तेवर के समानांतर चले वाला एगो गजल ।
एह गजल के लेखक बानी रामेश्वर प्रसाद सिन्हा 'पीयुष' जी ।
गजल के पढीं -
कतनो हिया में बात के राखी छिपाइके
तबहूँ निकल ऊ जात बा ओठन प आइके
लागल कि मन फुहार में भींजी गतर-गतर
केहू गइल उमेद के बदरी उड़ाइ के
जिनिगी भ जे अन्हार में घुट-घुटके मर गइल
राखल बा का मजार प दीया जराइके
जेकरा कउल प हमरा भरोसा रहे बहुत
अचके मुकर गइल बा ऊ मंदिर में जाइके
कइसे कहीं, लगाव ना उनुका ले रह गइल
रिस्ता टिकल बा दोस्त से दुश्मन प आइ के
जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में
तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके
कइसन ह सुख सुराज के 'पीयुष' का कहीं
कुछ लोग लूट लेत बा तिकड़म भिडाइके
बहर कहीं मक्ता कहीं शेर कहीं जवन मन करे तवन कहीं बाकिर एह गजल के पढत घरी आ एकर माने बुझत घरी रउवा भोजपुरी भाषा आ साहित्य के तेवर के थाह लागी आ संगे संगे, एगो बिदेसी विधा में भोजपुरिया लेखनी के जबराट बाकिर मुलायम भाव रउवा सभ के पढे के मिली ।
परास पत्रिका के इ अंक भोजपुरी साहित्यांगन प लागल बा रउवा सभ एह अंक के ओजुगा से फोकट में डाउनलोड क के पढ सकेनी , अउरी बहुत कुछ बा ओह में जवनन के पढि के आपन विचार राखि सकेनी ।
एहि पत्रिका में कानू सान्याल प लिखत राजकमल चौधरी के एगो बड़ा शानदार हिंदी रचना के जिक्र बा जवन, हमरा निजी रुप से बड़ा जबरजस्त आ शानदार लागल । उ हिन्दी रचना ह -
आदमी को तोड़ती नही हैं लोकतांत्रिक पद्धतियाँ
केवल पेट के बल उसे झुका देती हैं
धीरे-धीरे अपाहिज
धीरे-धीरे नपुंसक बना लेने के लिए
उसे शिष्ट राजभक्त
देशप्रेमी नागरिक बना लेती है
आदमी को इस लोकतंत्री संसार में
अलग हो जाना चाहिए ।
राजकमल जी के एह पंक्तियन के पढला के बाद अब एक हाली फेरु से रामेश्वर प्रसाद सिन्हा जी के उपर के गजल के अंतिम दू गो शेर के पढीं -
जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में
तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके
कइसन ह सुख सुराज के 'पीयुष' का कहीं
कुछ लोग लूट लेत बा तिकड़म भिडाइके
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के विकास खातिर, भोजपुरी में लिखत पढत रहीं । भोजपुरी, बड़हन भूभाग के भाषा ह एह से ओह बड़हन भूभाग प एह भाषा के तेवर आ ताव बना के राखे खातिर एह में लिखल पढल जरुरी बा ।
- नबीन कुमार
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