बहु ,ये मकान तुम्हारी माँ ने दहेज में तो नहीं दिया था ..............
धीरे-धीरे कदमों से चलती हुई मीना जी अपने घर की तरफ बढ़ रही थीं। उन्हें इस तरह लँगड़ाते हुए देखकर पड़ोस में रहने वाली सुजाता जी ने कहा,
"अरे दीदी! क्या हुआ? लगता है आपके घुटनों में दर्द ज्यादा है?"
"हां, उम्र का असर है, दर्द तो होता ही रहता है। दवाइयां लानी थीं इसलिए निकल कर गई थी, वरना घर पर ही आराम कर रही थी।"
"तो आप अकेले क्यों गई थीं दवाई लेने? राजू को ले जातीं।"
सुजाता जी की बात सुनकर मीना जी चुप हो गईं। आखिर कहतीं भी क्या कि बेटा उनके साथ नहीं जाता। पर सुजाता जी को तो उनके घर की सारी बातें पता थीं इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा और चुप हो गईं। आखिर बोल-बोलकर क्या किसी के दर्द को कुरेदना।
मीना जी वैसे ही लँगड़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ गईं। जैसे ही घर में घुसीं, देखा कि उनके कमरे का सामान ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो रहा था। एक पल के लिए वो तो सोच में पड़ गईं, पर फिर बोलीं,
"अरे, मेरा सामान ऊपर कहाँ शिफ्ट कर रहे हो? मेरा कमरा तो नीचे है ना?"
"है नहीं, था मम्मी जी। हमें उस कमरे की बहुत जरूरत थी। इस कारण से आपका कमरा ऊपर शिफ्ट कर रहे हैं।"
"पर मेरे घुटनों में दर्द रहता है। यूँ सीढ़ियाँ ऊपर-नीचे चढ़ना नहीं कर सकती बार-बार।"
"बाहर घूमने जाने में आपके घुटने में दर्द नहीं होता। ऊपर-नीचे होने में ही दर्द होता है। सब बहाने हैं, रहने दीजिए। आपको ऊपर वाले कमरे में ही जाना पड़ेगा।"
"पर बहू, मैं घूमने नहीं गई थी। मेरी दवाइयां खत्म हो गई थीं। मैं तो अपने घुटनों के लिए दवाई लेने गई थी।"
"देखिए मम्मी जी, मेरी बहन आ रही है। पूरे दो साल का कोर्स है तो दो साल तक वो यही रहेगी और उसे कमरे की जरूरत पड़ेगी इसलिए आपका कमरा खाली कर रहे हैं।"
"अरे, तो उसे ऊपर वाला कमरा दे दो। वो तो जवान है, आराम से ऊपर रह सकती है। मना थोड़ी ना कर रही हूं।"
"मेरी बहन उस छोटे से कमरे में रहेगी? मायके में मेरी भी कोई इज्जत है। और आप मुझे मना करने वाली कौन होती हैं? घर हमारा है। घर का खर्चा हम उठा रहे हैं। हमारा डिसीजन हम किसे कहाँ रखते हैं? ऊपर वाले कमरे से इतनी ही दिक्कत है तो आप बाहर वाले कमरे में रह जाइए। हमें कोई एतराज नहीं है।" बहू नैना ने बड़ी बेरुखी से कहा।
सुनकर मीना जी की आंखों में आंसू आ गए। बेटा राजू सामने ही था लेकिन वह तो बुत बना खड़ा तमाशा देख रहा था। एक बार भी उसने नैना को टोका तक नहीं। और बाहर वाला कमरा? वह तो स्टोर रूम था। मतलब अब मीना जी की ये हैसियत रह गई। बहू कबाड़ की तरह मीना जी को स्टोर रूम में रहने के लिए कह रही थी और नालायक बेटा सामने खड़ा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रहा था।
जबसे मीना जी के पति गए हैं तब से बेटा-बहू घर के सर्वेसर्वा बन गए हैं। माना कि घर में खर्चा करते हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि मां के स्वाभिमान को ही कुचल दें जबकि मकान अभी भी उन्हीं के नाम था। अपनी बहू की जबान से ज्यादा मीना जी को उनके बेटे की चुप्पी चुभ रही थी। आखिर बर्दाश्त के बाहर हो गया तो वह बोल पड़ीं,
"बहू, जब तुमने मेरा कमरा लिया था ये कहकर कि मम्मी जी हमें बड़े कमरे की जरूरत है, तब मैंने कुछ नहीं कहा। यह सोचकर चुप रह गई थी कि बेटे-बहू को क्या तकलीफ देना। दोनों मेरे अपने ही तो हैं। लेकिन आज, तुम मुझे स्टोर रूम में रहने को कह रही हो।"
"शुक्र मनाइए कि स्टोर रूम में रहने को कह रही हूं, वृद्धा आश्रम में नहीं भेज रही हूँ। एक तो हमारा ही खाती हो, ऊपर से हमें ही सुना रही हो।"
"बस करो बहू। बहुत बोल लिया तुमने। यह घर आज भी मेरा है। तुम यह मकान अपने दहेज में नहीं लाई थी। और हां, चुपचाप अपना कमरा भी खाली करो। मैं अपने कमरे में वापस शिफ्ट हो रही हूं।"
"अच्छा, घर का खर्चा हम कर रहे हैं तो आपकी दो बातें क्यों सुनें?"
"आज के बाद करने की जरूरत नहीं है। अगर इस घर में रहना है तो किराया दो। अन्यथा घर खाली करके चले जाओ। मैं किराएदार रख लूंगी। मेरे घर का खर्च मैं खुद निकाल लूँगी।"
"मम्मी, तुम अपने बेटे को इस घर से निकलने के लिए कह रही हो?"
"वाह बेटा! इतनी देर से तेरी बीवी जब मेरी बेइज्जती किए जा रही थी। मुझे वृद्धाश्रम छोड़कर आने की बात कर रही थी, तब तुझे सुनाई तक नहीं दे रहा था। और मैंने तुम लोगों से किराया देने को क्या कह दिया, तुम्हें सुनाई देने लगा। मुझे कुछ नहीं सुनना। अब तक यही सोचती रही कि काश एक दिन तुम लोग मुझे समझोगे पर वो दिन कभी नहीं आया। शायद मुझे अकेले रहने से डर लगता था। पर अब नहीं, अब यूँ बेइज्जत होकर साथ रहने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ अकेली ही रहूँ। अब जो भी निर्णय लेना है फटाफट लो और कमरा खाली करो। बस।"
ये सब सुनकर बेटा-बहू की हालत खराब हो गई। इतनी जल्दी कहां जाएंगे? दोनों फटाफट मां के पैरों में पड़ गए,
"हमें माफ कर दो मम्मी। प्लीज हमारे साथ ऐसा मत करो।" पर मीना जी ने मन पक्का कर लिया था। वे झुकने को तैयार नहीं हुईं। निरादर की दो रोटी से तो स्वाभिमान की एक रोटी भली। और भला काश के इंतजार में जिंदगी क्यों बितानी?
और आखिरकार राजू और नैना उसी घर में ऊपर वाले दो कमरों में शिफ्ट हुए और आज भी उसका किराया दे रहे हैं। जबकि नीचे का वह एक कमरा किसी और को मीना जी ने किराए पर दे दिया। रही बात नैना की बहन की तो वह हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है।
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