Monday, 29 August 2016

शिखर पर विराजे स्वतन्त्रता।
राजसिंहासन है ही है मनमन्ता।
शिखर से दिखता दृश्य अलग
शिखर को जाते मार्ग भी अलग।
प्रजा को दिखता राजा ही भ्रम
धरा से दिखता शिखर भी भ्रम।
शिखर अलग , शेखर भी अलग
राजदण्ड अलग ,राजा ही अलग।
शिखर की आश ,प्यास है अलग
शिखर से धरा का ब्यास है अलग।
ब्यष्टि  को समष्टि निगल नहीं पाई
समष्टि को निगलता राजा है अलग।   

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