Tuesday, 23 August 2016

पूज्य शंकर दयाल बाबू  बड़े आत्मीय ढंग से कहा करते थे - अपनों द्वारा स्वीकृति बहुत देर से , मुश्किल से मिलती है , और मिल जाने पर ब्यक्ति बुद्ध , महावीर , गाँधी हो जाता है।
जिस समारोह की फोटो आपने पोस्ट की है , उस दिन की उनकी उत्तेजना का मैं अंतरंग साक्षी हूँ , वे नगर भवन मेरे घर से समित्रादि चाय  लेकर ही चले थे।
आपका आमन्त्रण मन-मस्तिष्क -हृदय, रक्त , आत्मा सब को छू गया।
अश्रुपूरित आत्मीय प्रणाम , उस औरंगाबाद धरा के समस्त जड़ चेतन  सभी को।
एक आप ही तो रहे पिछले बीस वर्षों में , मेरे थे , मेरे रहे , मेरे जैसे ही रहे ------>>>>>

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