क्या सचमुच कभी याद नहीं आती ?
एक ही चद्दर- रजाई में वह गड्डमड्ड सोना,
एक ही थाली में खाया हुआ वह खाना
साथ साथ वह स्कूल के लिये निकलना
भीड़ भरी बस में लटकता वह बचपन
एक दूसरे का वह बेबस उदास चेहरा
कभी कभार की गई वह हँसी ठीठोली
एक दूसरे से वह गुस्सा, वह मजाक
आपस में मिल कर रोया वह दुःख
बन्धाई थी जो हिम्मत हमने- आपने
साथ में चला गया वह अंधेरा रास्ता
मिल कर किया करते थे जो ड्रामा
वह सपना , इरादा , जो अपना था
थी वे संग संग की गई बदमाशियाँ
वह बचपन से आज तक जो चला
क्या सचमुच कभी याद नहीं आती ?
एक ही चद्दर- रजाई में वह गड्डमड्ड सोना,
एक ही थाली में खाया हुआ वह खाना
साथ साथ वह स्कूल के लिये निकलना
भीड़ भरी बस में लटकता वह बचपन
एक दूसरे का वह बेबस उदास चेहरा
कभी कभार की गई वह हँसी ठीठोली
एक दूसरे से वह गुस्सा, वह मजाक
आपस में मिल कर रोया वह दुःख
बन्धाई थी जो हिम्मत हमने- आपने
साथ में चला गया वह अंधेरा रास्ता
मिल कर किया करते थे जो ड्रामा
वह सपना , इरादा , जो अपना था
थी वे संग संग की गई बदमाशियाँ
वह बचपन से आज तक जो चला
क्या सचमुच कभी याद नहीं आती ?
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