सन्तान के धरती पर आने के पहले ही उसे जायज ,नाजायज ,ठहरा देना ,उसे कानून से बांध देना- कानून भी वह जिसके बारे में न तो उसे कोई जानकारी , न उसकी सहमति - वह धरती के किस कोने में किस अवस्था में जन्म लेगा यह सब अनिश्चित पर यही अनिश्चितता उसका भविष्य तय करे .उसके जन्म केपहले ही उसका धर्म , राष्ट्रीयता निर्धारित कर देना - माता - पिता के किये कराये को भोगने को अभिशप्त संतान ,अथवा माता पिता के द्वारा नहीं किये गये को ढोने , भोगने को मजबूर सन्तान .
सन्तान नहीं माता-पिता पर प्रश्न उठने चाहिये .सभी शिशुओं का जीवन अमूल्य है ,उसे स्वतंत्र होना चाहिये .
उसे उसके जन्म के साथ ही बन्धनों में न बांधें तो अच्छा .
प्रकृति का अनुसरण करें ,,यही कामना रहेगी
सन्तान नहीं माता-पिता पर प्रश्न उठने चाहिये .सभी शिशुओं का जीवन अमूल्य है ,उसे स्वतंत्र होना चाहिये .
उसे उसके जन्म के साथ ही बन्धनों में न बांधें तो अच्छा .
प्रकृति का अनुसरण करें ,,यही कामना रहेगी
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