Monday, 5 January 2015

अत्यधिक धीरज हमें समय पर कुछ उचित करने से रोकता है . इस तरह का सोच समाज को यथास्थितिवादी बनाता है .प्रकृति के मूल तत्व के विरुद्ध है . प्रकृति समय पर परिवर्तन के लिये प्रतीक्षा की अनुमति नहीं देती . निरंतर क्रिया -प्रतिक्रिया ही प्रकृति का आदेश है . धीरज का उपदेश सदैव समझ में नहीं आता .

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