नहीं,कविता अनाथ कभी नहीं होती- कविता का न तो नाम पुछा जाता है,न कविता के माँ- पिता की खोज कीजातीहै- कविता अपना परिचय खुद ही है -कविता अपना अर्थ खुद पसारती है- कविता मरा नहीं करती , खो जा सकती, धूमिल हो जाती है,,न दफन होती है- - कविता कीलाश तो हो ही नहीं सकती.
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