Saturday, 10 January 2015

अनगढ़ मुझे सुंदर क्यों लगता है .
जिसे अभी तक गढ़ कर मूरत नहीं निकाल ली गई है वह मुझे बैचैन क्यों कर देता है .
आई ए एस पास किया युवक मेरे चित्त से उतर जाता है और विद्यार्थी मुझे अपने घेरे में क्यों ले लेता है .
पेंटिंग पूरी हुई नहीं की मेरा मन क्यों भटक जाता है 
मैं पुनः नये पराक्रम से क्यों कोरे कैनवास को फिर से शिद्दत से खोजने लगता हूँ .
मुझे पेंटिंग से अधिक प्रिय मेरी ये ब्रशें क्यों लगती है .
मुझे यह कोरा कैनवास अनंत कीमती पेंटिंग से भी अप्रतिम सौन्दर्य क्यों और कैसे दिखाता है
.मुझे महापुरुषों में रूचि क्यों नहीं जगती -- विद्यार्थी महापुरुष क्यों लगते है .इस बच्चे का बचपना मुझे मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व ,युक्ति ,शक्ति से भी अधिक ओजस्वी क्यों लगता है .
हर बीज मेरे हर सपने में क्यों आता है ,फुन्गता है और मैं क्यों अहले सुबह मुंह ढांपे इन नन्हें बीजों को चार बूँद पानी देने कोनिकल पड़ता हूँ .
यह सब मुझे इतना प्रिय क्यों हैं

No comments:

Post a Comment