दूसरों ने अपने दरवाजे ,खिड़कियाँ ,रौशनदान बंद कर रखे हैं तो मैं भी देखा देखी यह पाप कर अपने ही पतन का मार्ग स्वयं क्यों प्रशस्त करूं ?
कदापि नहीं !
मुझे नित नई सुबह ,नित्य-प्रकाश ,शुद्ध-प्रवाहमान -हवा तथा हर समय नये होते पानी में नये सोच के साथ जीने दो .
-इस क्रम में यदि पुराना कुछ छूट ही जाता है या छोड़ना ही पड़ता है तो उसे छोड़ देने का कोई अफ़सोस नही होना चाहिये .
,परिमार्जन के अवसर की प्रसन्नता होनी चाहिये
कदापि नहीं !
मुझे नित नई सुबह ,नित्य-प्रकाश ,शुद्ध-प्रवाहमान -हवा तथा हर समय नये होते पानी में नये सोच के साथ जीने दो .
-इस क्रम में यदि पुराना कुछ छूट ही जाता है या छोड़ना ही पड़ता है तो उसे छोड़ देने का कोई अफ़सोस नही होना चाहिये .
,परिमार्जन के अवसर की प्रसन्नता होनी चाहिये
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