Friday, 9 January 2015

वे जो जाने- अनजाने , चाहे अनचाहे लड़ते झगड़ते ही रहे ,उखड़े नहीं , बहे नहीं ,बस किसी तरह जमे भर रहे ,रह गये सो रह गये . आज देखो वे कैसे लहलहा रहें है ,उनकी फुनगियों को देखो तो सही कैसे आसमान से बात करती ,आँख मिलाती है ,जड़ों को देखो - कितनी सारी जमीन को बांध लिया, जमीन को भी सहारा ,खुद को भी , हरियाली तो देखो ,और हाँ देखो तोय्ह्तना -वृक्ष कितना विशाल हो चला . बस इसी तरह जम जाओ .जमे रहना .जमे रहो .
तुम जमीन आसमान हवा सब तक पहुँच जाओगे ,सारी जगह ब्याप जाओगे ,

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