यदि आपने मेरी और मैंने आपकी कमजोरियों को स्वीकार कर लिया ,मैंने उसका प्रयोग अपने बल-वृद्धि के लिये नहीं किया ,आपने भी मेरी कमजोरियों से स्वयं को महिमा मंडित नहीं किया ,दोनों को यथास्थान रखते हुए मिलजुल कर उसका या तो उपचार किया या उसकी रक्षा या देखभाल की तो बस हम एक दुसरे के हो लिये ,मैं आपका हुआ ,आप मेरे .
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