Tuesday, 4 March 2014

नदी का पानी ईत्ता मिट्ठा
सागर तू ईत्ता खारा क्यूँ !

चांदनी तो है इत्ती प्यारी
सूरज तू इत्ता अंगारा क्यूँ।

चारों ओर है जीवन इत्ता
फिर भी धरती उदास क्यूँ !

बादल इत्ता ,पानी इत्ता
सागर होते इत्ती प्यास क्यूँ।

रिश्ते हैं इत्ते, नाते भी इत्ते
फि भी हम  इत्ते अकेले क्यूँ!

सूरज, चाँद, सितारे सब इत्ते
दिये जले तो इत्ता अँधारा क्यूँ   !

No comments:

Post a Comment