Tuesday, 11 March 2014

साहित्य केवल सपनों की दुनिया या कल्पना लोक की सैर नहीं है - यह वास्तविकता से साक्षात्कार है - फिर चाहे भयंकर  रस  या वीभत्स रस या रौद्र रस या वीर रस ,भयानक रस ,वैराज्ञ  रस, कोई भी रहे ,साहित्यकार को किसी रस से परहेज नहीं करना चाहिये । चुन चुन कर रसों को परोसना क्यों तो मुझे अच्छा नहीं लगता ।
साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है , न ही नशे  की वटी  जो छन भर के लिए ही सही आपको गफलत में दल सकून दे जाये ,यह तो एक चिंगारी होती है ,एक शिक्षा होती है ,एक पाठ्य सुपाठ है ,एक रास्ता है ,एक दीप है ,एक लक्ष्य है - मात्र नख शिख वर्णन नहीं - जिज्ञासा-मीमांसा है । 

2 comments:

  1. साहित्य सपनों के सँजोने का माध्यम भी है। दमित इच्छाओं की अभिवयक्ति "स्वप्न" है। साहित्य न केवल तत्कालीन सभ्यता एवं संस्कृति से साक्षात्कार है बल्कि भविष्य निर्धारण की सुनहरी रूप रेखा भी हो सकती है।

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