जिनकी जड़ें नहीं होती वे किसी सीलन भरी जमीन के आस पास जमीन में सप्रयत्न गड़ कर टहनी से ही अपनी जड़ें निकाल लेते है। जिस टहनी पर पत्तियाँ, फूल, फल शोभती थी , सुबह की धूप, चिड़ियों का नाच होता था, बरसता था हर नक्षत्र की वर्षा का जल वह जमीन में दब गड़ कर क्या भोगती है, केवल वही जानती है क्योंकि उसे वहीं से जड़े फिर से एक बार निकाल नया जीवन शुरू करना ही होगा।
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