उन्नति, प्रगति, विकास की राहों में बाधा तो आयेंगी, विरोधी भी होंगे, प्रतियोगी भी होंगे, सदैव सब कुछ नैतिक ही होगा, उचित ही होगा, न्यायपूर्ण ही होगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं दे सकता। हर एक अपने लक्ष्य की पुर्ति के लिए पुरजोर, हरसम्भव, हरप्रकार से प्रयास तो करेगा ही। उसे अधिकार भी है। आत्मरक्षा और स्व के विकास, वैभब के लिये सभी उपलब्ध मार्ग उसके अपने विवेक से उपयोग करने का। समाज थोड़ा बहुत डरा, धमका सकता है, दण्डभय दिखा सकता है। पर आपको तो उनको झेलना ही पड़ेगा। समाज जो करेगा, वह तो बाद की बात है। पहले तो आप पर उचित, अनुचित, अनैतिक सबकुछ गुजर चुका होगा। उन्नति के मार्ग के ये स्वाभाविक रोड़े, ब्यवधान हैं।
इन्हें पार लगा कर ही सफल हुआ जा सकता है।
इन्हें पार लगा कर ही सफल हुआ जा सकता है।
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