Friday, 5 April 2019

आश्चर्य की बात है कि आधुनिक भारतीय इतिहास के बेहद चमकीले दो सितारे राममनोहर लोहिया और बी.आर. आंबेडकर कभी नहीं मिले. कम से कम उन दोनों के सार्वजनिक रूप से मिलने का कहीं कोई दस्तावेज़ या अन्य प्रमाण नहीं है. वे दोनों बार-बार मिल सकते थे. दोनों की राजनीतिक यात्रा साथ-साथ चली. लेकिन ऐसा लगता है कि दोनों के वैचारिक साम्य की तलाश देर से शुरू हुई. 1956 में दोनों नेताओं के बीच पत्राचार शुरू हुआ, मिलने की योजना भी बनी. लेकिन वह मुलाकात कभी हो नहीं पाई. 6 दिसंबर, 1956 को बाबा साहेब का परिनिर्वाण हो गया और दोनों नेताओं की साथ मिलकर काम करने की योजना पर कभी अमल नहीं हो पाया. कहना मुश्किल है कि उस समय अगर लोहिया और आंबेडकर साथ आए होते तो देश की राजनीति पर इसका क्या असर हुआ होता.

लोहिया और आंबेडकर की राजनीतिक यात्रा में काफी समानताएं हैं.

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