मैं सोच रहा हूँ डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की जयंती की प्रासंगिकता हमारे मारवाड़ी युवकों के लिए क्या है
कलम जिससे उन्होंने पहली और कई बार अपनी तात्कालिक आवश्यकता पूर्ण की।केवल लेख लिख कर।
विचार- जो इतने प्रखर और स्पष्ट थे कि गांधी ने भी 28 जनवरी 1948 को ही लोहिया जी को भविष्य की योजना, राजनीति पर चर्चा के लिये बुलाया। एक 38 वर्षीय युवक के लिए यह आमंत्रण आश्चर्य जनक था। गांधी के 1947 की स्वतंत्रता के बाद के रुख से असहमत, सहमे हुए, डरे हुए ग्रुप्स के लिए खतरे की घण्टी थे। पूरी 28 तारीख को उनसे लोहिया जी को वन टू वन मिलने नहीं दिया गया। गांधी जी ताड़ गये। उन्होंने लोहिया जी को रात में रुकने को कह दिया। लोहिया और गांधी साथ ही रुके । पर सकते में था वह ग्रुप। लोहिया जी को अंततः 30 तारीख को बिड़ला हाउस शाम को बुलाया गया। पर गांधी लोहिया परिचर्चा हो न सकी और गांधी जी के साथ वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था।
खुलापन - 1957 , कलकत्ता के महा जाति सदन में लोहिया जी ने नारी विमर्श और अपने समाज के कतिपय कार्यकलापों पर बेबाक टिप्पणी की।
भँवर्मल जी सींगी उनके विचारों से सहमत थे। उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ समाज में डायरेक्ट एक्शन तक किया था। वे मौलिक सामाजिक चिंतक थे। पर समाज के कुछ ठीकेदारों बे लोहिया के नारी पर खुले विचारों पर खुली आपत्ति की। समाज पर की गई टिप्पणी भी बहुतों को नागवार गुजरी। शाम 7.30 बजे सत्यनारायण पार्क के सामने सात तल्ला वाली बिल्डिंग के निचे लोहिया जी को वह विरोध,अपमान झेलना पड़ा जो नहीं होना चाहिए था। समाज की राजनीति में केंद्रीय भूमिका का अभाव, उसके प्रति चेतना का अभाव उसके बाद भी उन्हें कचोटता था।
वे राजनीति के शिखर प्रखर विचार पुरुष थे। वे सामाजिक ,राजनैतिक भविष्य वक्ता ते।
उनके सामाजिक सरोकार, नारी विमर्श, आर्थिक आंकड़ेबाजी, भविष्यवाणियां , राजनैतिक दूर दृष्टि बहुत तीब्र, प्रभावी थी पर कुछ एक प्रबुद्ध ही समझ पाये। पर जिन्होंने समझा, उनके लिए लोहिया का कहा, बोला, लिखा, जिया , किया सब कुछ गीता कुरान हो गया तभी तो लोहिया के विचार लोहियावाद और उसके अनुगामी लोहियावादी हो गये। उनके कहे, लिखे, किये, जिये पर आज और अभी तक हजारों शोधग्रन्थ प्रकाशित हो चुके, अभी और भी अनन्त सम्भावना है।
लोहिया की आज से 50/60 साल पहले कहा सुना आज सारे समाज मे स्वतः प्रमाणित हो रहा है।
साहस - जिस साहस से लोहिया जी ने उस वक्त के महा प्रतापी लोकनायक नेहरू का सामना किया और अपने बहुत ही छोटे सांसद कार्यकाल में नेहरू के सोच, जीवन शैली पर कटाक्ष किया वह उनके अदम्य साहस का प्रमाण ही है।
सोच - लोहिया जी ने प्रमाणित किया कि जीवन लम्बा नहॉ सोद्देश्य होना चाहिये।
केवल 57 साल के छोटे से जीवन में उनकी उपलब्धियों का समझ कर यदि समाज में अभी भी एक नए लोहिया बनने का संकल्प पैदा हो जाये तो यह आयोजन सफल, आयोजकों का पुरुषार्थ सफल और लोहिया का बीज स्वप्न सफल हो जाएगा।
राष्ट्रीय फलक पर सोचना, खुला सोचना और साहस के साथ विरोधियों के बीच भी उसे प्रकट करना, उस पर अमल करना ही लोहिया का ब्यक्तित्व-कर्तृत्व है।
अक्खड़ स्वभाव, जिद्दी, निडर, सादगी से भरा निष्कलंक जीवन ही लोहिया की पहचान है।
आज समाज में लोहिया के विचारों से यदि उपस्थित एक भी ब्यक्ति झंकृत भी हो जाये तो मेरे वक्तब्य को मैं सार्थक मानूँगा।
कलम जिससे उन्होंने पहली और कई बार अपनी तात्कालिक आवश्यकता पूर्ण की।केवल लेख लिख कर।
विचार- जो इतने प्रखर और स्पष्ट थे कि गांधी ने भी 28 जनवरी 1948 को ही लोहिया जी को भविष्य की योजना, राजनीति पर चर्चा के लिये बुलाया। एक 38 वर्षीय युवक के लिए यह आमंत्रण आश्चर्य जनक था। गांधी के 1947 की स्वतंत्रता के बाद के रुख से असहमत, सहमे हुए, डरे हुए ग्रुप्स के लिए खतरे की घण्टी थे। पूरी 28 तारीख को उनसे लोहिया जी को वन टू वन मिलने नहीं दिया गया। गांधी जी ताड़ गये। उन्होंने लोहिया जी को रात में रुकने को कह दिया। लोहिया और गांधी साथ ही रुके । पर सकते में था वह ग्रुप। लोहिया जी को अंततः 30 तारीख को बिड़ला हाउस शाम को बुलाया गया। पर गांधी लोहिया परिचर्चा हो न सकी और गांधी जी के साथ वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था।
खुलापन - 1957 , कलकत्ता के महा जाति सदन में लोहिया जी ने नारी विमर्श और अपने समाज के कतिपय कार्यकलापों पर बेबाक टिप्पणी की।
भँवर्मल जी सींगी उनके विचारों से सहमत थे। उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ समाज में डायरेक्ट एक्शन तक किया था। वे मौलिक सामाजिक चिंतक थे। पर समाज के कुछ ठीकेदारों बे लोहिया के नारी पर खुले विचारों पर खुली आपत्ति की। समाज पर की गई टिप्पणी भी बहुतों को नागवार गुजरी। शाम 7.30 बजे सत्यनारायण पार्क के सामने सात तल्ला वाली बिल्डिंग के निचे लोहिया जी को वह विरोध,अपमान झेलना पड़ा जो नहीं होना चाहिए था। समाज की राजनीति में केंद्रीय भूमिका का अभाव, उसके प्रति चेतना का अभाव उसके बाद भी उन्हें कचोटता था।
वे राजनीति के शिखर प्रखर विचार पुरुष थे। वे सामाजिक ,राजनैतिक भविष्य वक्ता ते।
उनके सामाजिक सरोकार, नारी विमर्श, आर्थिक आंकड़ेबाजी, भविष्यवाणियां , राजनैतिक दूर दृष्टि बहुत तीब्र, प्रभावी थी पर कुछ एक प्रबुद्ध ही समझ पाये। पर जिन्होंने समझा, उनके लिए लोहिया का कहा, बोला, लिखा, जिया , किया सब कुछ गीता कुरान हो गया तभी तो लोहिया के विचार लोहियावाद और उसके अनुगामी लोहियावादी हो गये। उनके कहे, लिखे, किये, जिये पर आज और अभी तक हजारों शोधग्रन्थ प्रकाशित हो चुके, अभी और भी अनन्त सम्भावना है।
लोहिया की आज से 50/60 साल पहले कहा सुना आज सारे समाज मे स्वतः प्रमाणित हो रहा है।
साहस - जिस साहस से लोहिया जी ने उस वक्त के महा प्रतापी लोकनायक नेहरू का सामना किया और अपने बहुत ही छोटे सांसद कार्यकाल में नेहरू के सोच, जीवन शैली पर कटाक्ष किया वह उनके अदम्य साहस का प्रमाण ही है।
सोच - लोहिया जी ने प्रमाणित किया कि जीवन लम्बा नहॉ सोद्देश्य होना चाहिये।
केवल 57 साल के छोटे से जीवन में उनकी उपलब्धियों का समझ कर यदि समाज में अभी भी एक नए लोहिया बनने का संकल्प पैदा हो जाये तो यह आयोजन सफल, आयोजकों का पुरुषार्थ सफल और लोहिया का बीज स्वप्न सफल हो जाएगा।
राष्ट्रीय फलक पर सोचना, खुला सोचना और साहस के साथ विरोधियों के बीच भी उसे प्रकट करना, उस पर अमल करना ही लोहिया का ब्यक्तित्व-कर्तृत्व है।
अक्खड़ स्वभाव, जिद्दी, निडर, सादगी से भरा निष्कलंक जीवन ही लोहिया की पहचान है।
आज समाज में लोहिया के विचारों से यदि उपस्थित एक भी ब्यक्ति झंकृत भी हो जाये तो मेरे वक्तब्य को मैं सार्थक मानूँगा।
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