Monday, 11 September 2017

और कितने दरोगा , सिपाही अभियुक्त को पकड़ने , पीछा करने , अनुसंधान में मर खप जाते है, मार दिये जाते है उन्हें हमने आपने क्या उनके परिवार का पुत्र-पति लौटा दिया ?
बनवाया भी किसी ने की नहीं।  बनवाने की सलाह भी दी की नहीं।  नहीं बनता है तो हम बनवा देंगे कौन कहता है हम तो खरीदेंगे ही - हमारा भ्रष्टाचार ब्रश्ताचार नहीं।  हम तो करेंगे ही नहीं बिकोगे  तो जान मर गेंगे , बच्चों को उठा लेंगे - तुम भ्रष्टाचार करो।बचाव पक्ष के वकील क्या क्या हथकंडे अपनाते है , आप से अधिक कौन जनता है।  तबल पर बैठ क्र क्या होता है आप से बेहतर कौन जानता है कानून से पहले समाज बदलो 
केवल अधिकारी वाला पक्ष ही ? बिना अधिकारी के संज्ञान के जो बोली लग जाती है ? वह ?
ठीकेदार नहीं करता , राशन दुकानदार नहीं करता , ब्यापारी नहीं करता , स्टाम्प वेंडर नहीं करता, मुखिया नहीं करता , नेता नहीं करता ,वार्ड कमिश्नर नहीं करता  , ताईद नहीं करता , मैं नहीं करता , मेरा भाई नहीं करता , मेरा रिश्तेदार नहीं करता - और यदि करता है  तो "जन" नहीं है ! यही न !!
या भ्र्ष्टाचारी दूसरे उपग्रह से आते हैं और भ्र्ष्टाचार क्र वापस दूसरे ग्रह में चले जाते है। 
मैं , मेरा , मेरे - हम सब दूध के नहाये ?
बस मुझे आज की , अभी की , अपनी ही बात से मतलब है , जो जितना , जैसा मुझे दिखा , मैंने भोगा - पुरे से या तुम्हारे से मुझे क्या मतलब ?
वैश्यालय क्या अकेले वैश्या चलाती है।  एक बालिका वैश्या कब , क्यों बनती है , किसके द्वारा बनाई जाती है -उसका यह जीवन अकेले चलता है क्या ?
भ्रष्टाचार क्या अकेले एक पक्ष कर सकते हैं। क्या भ्र्ष्टाचार में जन भागीदारी नहीं है 
सभी के जागरूक होने से पोलियो भागता है, खुले में शौच से मुक्ति मिलती है तो उसी तरह सभी के सहयोग से  अपराध, भ्र्ष्टाचार भी भाग सकता है !
चिकने घड़े कब कम रहे है। प्रयत्न गीत लिखने से थोड़े देश स्वतंत्र हुआ।  
खामोश , पूरा समाज , हम आप सभी चुप , मुँह-आँख बन्द सो रहे हैं।  घर की नई बहू चौकीदार के साथ रा त भर जग कर  पहरा देने का दायित्व निभा रही है। 
इन्होने पुरुष -महिला में बाँट इलाज करने की राजनिती की।  उन्होंने इनकी रीढ़ बाबाओं को ही बाँट दिया। आगे देखो होता है क्या ?
दो चार साल देश में सरकार चलाना है। देश को ५वीं सदी में ले चलना है। इतिहास हजार साल पुराना ही प्रिय और गंतब्य है।  क्या यही लक्ष्य है। 
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सरकार है हाथी , महावत सुप्रीम कोर्ट लिये कानून और संविधान का अंकुश है सुरक्षा का सम्पूर्ण आश्वासन 
जब धनी आदमी को बुद्धि-अक्ल-समझ की जरूरत होती है तो उसे बुद्धिजीवी को ऊँचे आसन पर बैठा माला पहना ,प्रणाम कर चरण स्पर्श करना होता है। 
जिस समाज में बहुतायत से बुद्धिजीवी है वे धनी ब्यक्ति को तभी याद करते हैं जब उन्हें पैसे की जरूरत हो और धन को समर्पित करवा चरणों में रखवाते हैं. 

Sunday, 10 September 2017

इतिहास की विकृति को जान कर भी नई पीढ़ी को उसी ओर धकेलने के प्रयास का परिणाम है जे एन यू  की हार। भविष्य को इतिहास से मत ढकिये।  खुद को सुधारें ,भविष्य की ओर चले। 
इसी सोशल मिडिया से शिखर पर पहुँचे थे ! जिन्होंने पहुँचाया था वे ही अब इसी सोशल मिडिया से बुखार उतारते जमीन पर उतारेंगे। 

Saturday, 9 September 2017

चोर , डकैत, भ्र्ष्टाचारी , मक्कार  भी अपने आश्रितों के प्रिय हैं क्यों कि वे उनका पेट पालते है। जो पेट न पाले सो निकम्मा 
पिछली सत्तर पीढ़ियों के गुणगान , उनकी दासता ; से श्रेष्ठ है भावी सात  पीढ़ियों को गढ़ने , श्रेष्ठ बनाने, मनाने , सजाने  का सामूहिक प्रयास 
इतिहास के नशे, उसकी गुलामी से अच्छा है  -  भविष्य के प्रति उत्साह और उत्तेजना , नये वितान की  खोज !!
पद -प्रभाव का लोभ छोड़, जो काज करे, सो स्वयंसेवक कहलाय।
बाकी सब ,जब तक खाये, किये, लिये  ,बस गंग लाभ को जाय। 
जो आपके आश्रित नहीं वे आपके चरित्र - गुणों के ग्राहक -  जो आपके आश्रित वे देह-पसीने-खून-सम्पत्ति के ग्राहक 
आपके परिवार के लिये आपका गुणी होना नहीं, उपयोगी महत्व रखता है। यदि आपकी विद्वता , सदाचार ,चरित्र आपके आश्रितों का पेट नहीं पालता , तो सब ब्यर्थ।  
वह  कैसे मरी नहीं जानता , पर जैसे वह लिखती थी वह सामाजिक या पारिवारिक तो नहीं ही थी।  मैं अपने जवान होते बच्चो को उसके बारे में नहीं बता सकता। 
जयललिता , रामरहीम की ड्रेस जूते की गिनती हो गई।  लगे हाथों इनकी डिजायनर ड्रेस जूतों की भी गिनती हो जाये तो टन्टा मिट ही जाये !
चलो अच्छा हुआ , रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज ऑफिस से कचरा साफ। जो कम्पनियाँ रजिस्ट्रेशन के बाद से लगभग कभी काम नहीं ही की थी , वे भी फ्री। 

Friday, 8 September 2017

किसी लेखक , संवाददाता , रिपोर्टर , मिडिया हॉउस की प्रस्तुति आपको अच्छी नहीं लगी , मनोनुकूल नहीं है - उसे मत पढ़िये।  उसकी उपेक्षा कीजिये। जबरदस्ती तो आपको पढ़ने कहा नहीं जा रहा।
मैं हूँ या आप , किसी को लाठी ले सड़क पर अशान्ति फ़ैलाने का अधिकार नहीं। 
हाँ , यदि आप अपने अभिब्यक्ति के अधिकार की रक्षा चाहते है तो उनके भी अभिब्यक्ति के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए।
घृणा फैलाईयेगा तो घृणा ही मिलेगी। 
पत्रकारिता शब्द-भाव-प्रवाह -प्रभाव समानुपाति सामाजिक सेवा -प्रशिक्षण- परामर्श रही है , एक साथ सारे समाज तक ब्यापक पहुंच के कारण इसमें अतिरिक्त सावधानी और समझदार संयम की आवश्यकता महसूस की गई।  पत्रकारिता आज बाजार वाद से -ब्यक्तिवाद से प्रभावित हो दायित्वहीन  वाचाल लेखन हो  चली है।  सुधि पत्रकार इस और सचेत भी है।  नये पत्रकारों को पत्रकारिता के ब्यापक प्रभाव और उसके कारण उतपन्न दायित्व से  करवाया जा रहा है।  नई उम्र के पत्रकारों में विचार-दायित्व गाम्भीर्य आने में समय लगता है। 
आप बिना फीस के वकील क्यों बन रहे हैं जी ?  उनके वकील बहाल हुए है ?  वकालत स्वीकृत सामाजिक , विधिक व्यवहार है।  वकील से निष्पक्षता नहीं अपने वादार्थी के प्रति पूर्ण निष्ठा की अपेक्षा होती है।
मिडिया में पेड़ मिडिया गाली है।  पक्षपाती मिडिया निन्दा का पात्र है। मिडिया को कुछ जोड़ने  घटाने से बचना चाहिये।  मैं मिडिया - मेरा जो मन जैसे मन , जब मन , जब तक मन दिखाऊँ  दिखाऊँ -  इस मानसिकता से  बचना चाहिये 
मैं अपना ब्यक्तित्व दान करदेनाचाहता हूँ - ये बच्चे किसी तरह महानता का रास्ता भर पकड़ ले  
कोई तो इनमें से मेरे से भी श्रेष्ठ भी हो ही सकता है - भविष्य को कौन जानता है 
जब एक अनजान किशोर कहीं भीड़ में बाँह पकड़ लगभग जबरदस्ती सी करते कहता है कि मुझे तो आप जैसा ही बनना है - बना दीजिये न ; तब कुछ समझ में नहीं आता !
पहलवान बनने के लिए पहलवान की संगति जरूरी है। पहलवानी सिखने की इच्छा होनी चाहिए , सीखाने वाला खोजना होगा , फिर उसे सीखाने के किये तैयार करना होगा , फिर सीखना होगा।
खोजो , मनाओ , राजी करो , दाँत पर दाँत चढ़ाओ , जी कड़ा करो , सीखो , जब तक सीख न जाओ तब तक बर्दास्त करो सब कुछ !!
दिग्गी ने कौन सा ग्रेट पोस्ट शेयर कर डाला की उनके लोग छाती चौड़ी कर सर गर्व से ऊपर कर कहते फिर रहे है - गर्व से कहो , हम भी दिग्गी जैसे हैं. 
जब सरकार , अधिकारी, पुलिस  या जज अभियुक्त की ओर से दलील देने लगे , तब पीड़ित या जनसाधारण दिल पर क्या बीतती है ?

Thursday, 7 September 2017

पिंगल तुम नहीं पढ़ोगे  तो क्या मैं पढ़ूँगा 
सत्तर बीघा- नींव, बारह बीघा - बैठका, तीन बीघा- खाँड़ी , सत्रह नाद , छब्बीस खूंटा ,तीन आंगन
सीजनल फूल , नाच ,गाना , पेंटिंग तुम नहीं तो क्या मैं करूँगा।
पिंगल तुम नहीं पढ़ोगे  तो क्या मैं पढ़ूँगा ...
राजदण्डधारी जिसने जस की तस रख दीन्हि चदरिया - उन सब को मेरा प्रणाम। जिन जिन की चादर बेदाग रही - उन सबको प्रणाम। पर अपने आप से पूछ तो लीजिये ?
वे अरबी या फ़ारसी से उद्धृत करते है , ये संस्कृत से।  दोनों हजार पंद्रह सौ साल  पुरानी स्थापना।  मानो हजार पन्द्रह सौ सालों से सब कुछ आगे बढ़ा ही नहीं। धन्यवाद यथास्थितिवादियों। 
शहीद होने वाले कम ही मिलेंगे।  कितने यार , प्यारे , राजामेरे ,साला बन कर राज भोग गये। 
कुछ चले गए , कुछ जा रहे , बाकी कुछ भी चले ही जायेंगें।
उनको सिखाया पढ़ाया गया अलग से , वे कभी नहीं जायेंगें। 
फुस्स बम , बुझे दिये  और मिसफायर कार्टिज की भी जय बोलने वाले अभी भी हैं। बिना बाती की मोमबत्ती भी बिकती है भाई। 
बिना रीढ़ वाले यहाँ वहाँ , जहाँ तहाँ जमीन पर हर किसी के सामने हर तरह से उलटते पलटते लेटते झुकते मिलेंगे , आश्चर्य नहीं करें। 
हमारे हीरो, आदर्श  - हत्यारे ,चोर , डकैत , घोटालेबाज ,बलात्कारी , नशेड़ी , सजायाफ्ता , भगोड़े , फ्राड , धोकेबाज़ - सुबह अपराधी शाम आदर्श ! वाह !!
भाई , आजकल ये गंजी वाली प्रोफ़ाइल फोटो या कवर फोटो FB पर - कोई फंडा या मैसेज है क्या ? गांगुली टाईप  !
आजकल Ultra ( अतिवादी ) होने की फैशन है - चट एक्शन , पट रिएक्शन ,झट सलेक्शन , फटाफट कलेक्शन !! केजरी कन्हैया या बाबा भैया , सब की पार नैया  
मेरे  जिगर के टुकड़ों , चोरी से सरकार बनी है चोरी से हम पास करेंगे , कर्पूरी डिवीजन , मिश्रा-डिग्री ,  खुल्लम खुल्ला लालू राज , राजपूत विश्वविद्यालय , ब्राह्मण विश्विद्यालय , ..... , थिन पेपर गुरूजी , कोर्स- कम्प्लीट क्लासेस , समझने-समझाने में टाइम वेस्ट नहीं टीचिंग - ये सब  ( केवल केदार पांडेय को छोड़ सब  ) 
1967-70 के बाद भारतीय अर्थ ब्यवस्था  का सबसे बड़ा ऑपरेशन - २ लाख नकली टाइप कम्पनी  बंदी और छँटुआ डायरेक्टर छंटनी । सारा मिडिया चुप।  लंकेश बाँचने में मस्त। 
जिसके कंधे रिस्क वो मालिक , जिसने रिस्क को दूसरे पर  छोड़ा सो नौकर। असफलता की हानि जिसके जिम्मे वो मालिक। 
कुछ निराशावादी , संकुचित ,आत्ममुग्ध , पूर्वनिर्दिष्ट लाल हरे रंग के बुड्ढे खूसट बुद्धिजीवियों  को छोड़ दें तो हालिया वर्षों में भारतीय युवा चिंतन बहुत बदला है। 
क्या असहमति का अधिकार केवल उनका अकेले का ही है ?

Wednesday, 6 September 2017

मेरा एक परम् मित्र मेरे पोस्ट को समझ तो गया , असहमत हो नहीं सका , सहमत होना चाहता नहीं था ,इंटरनल कम्पल्सन , मेरे साथ खेलता रहा।  अच्छा लगा। 
बिना भूख खाने के लिये क्या क्या जतन करने पड़ते है - ऐम्बियंस, कटलरी, ग्रेनाइट, गर्म ,सजावट, हंसमुख , एटिकेट, मैनर्स, लैंग्वेज, लुक, अपील, टेस्ट, न्यूट्रिशन 
चार शाम भूखे रहने के हौसले के साथ काम करो और औरों को खिलाओ। मालिक बन जाओगे। पसीना सूखने के पहले खाना खोजोगे - मजदूर रहोगे। 
मोदी के पास संघ - नाड़ी - तंत्र से प्राप्त प्राणवायु है - ऊर्जा जड़ों द्वारा मिटटी से शिखर तक लगातार पहुंचती है।  औरों के पास केवल शिखर ही है 
नौकर बनने लायक बनना है या नौकर रखने लायक ?
'Whether to be an employee or an employer' - Choice is yours.


कानून नहीं कानून का पूर्ण बिना भेदभाव के प्रवर्तन सुनिश्चित हो।  कार्यपालिका १००% कम्प्लायंस करे और इसके लिये स्ट्रिक्ट लायब्लिटी सिविल पेनाल्टी हो।  उल्लंघन तो भुगतो। 
कड़कड़ा कर जब लगी हो भूख, तब स्वाद, रंग क्या करे ,क्या याद रहे 
जब भूख बिना खाना पड़े , तब स्वाद-शान-शो-शौकत ही काम करे। 
उन्हें हर मर्ज की दवा हथियार और मार काट ही क्यों लगती है। दुनिया के हर कोने से उनका यही पैगाम - न रहेंगें , न रहने देंगे। 
चार धार तलवार है ,विष बुझी है नोक।
लपके झपके जात है , नहीं कोई रोक।  
आवाज जो भी, जहां भी, उठे , मेरे लिए उठे !
जो मेरे लिये नहीं, सो सब कुफ्र !यह करार हो ?
वक्त , उफान और सैलाब ने सब कुछ तो मिटा ही दिया। 
वरना हिसाबकिताब - खाताबही , था तो सब गड़बड़ ही। 
बड़ी हिम्मत लगती है भाई अन्याय के खिलाफ खुलमखुल्ला , देह , चेहरा ,कलम,आवाज , शस्त्र या शास्त्र खोलने उठाने या दिखाने में। 

Tuesday, 5 September 2017

पी आई ऐल प्रसिद्धि की रॉकेट है जो जज को टॉप पर और वकील को पेशे में फिक्स करने इंस्टेंटली कारगर ,फायदेमंद है। PM , CM , DM सब डरते है। जज का काम करते हैं। 
हर एक  मौत राजनीतिबाजों के खेलने के लिये एक फुटबाल भर है। सामूहिक मौत हो तो राजनीतिबाजों का ओलम्पिक सेलिब्रेशन !!
संविधान तो हमारी दासी है।  नहीं है परसन में इनक्लूडेड तो कर  न देंगे। मरेगा ये तो हमारे ही हाथों क्यों कि यह हमारी एक्सक्लूसिव मिल्कियत जो है 
जो जितना बड़ा कलम घिस्सू वो कागज पर उतना बड़ा क्रन्तिकारी ,
फरेबी बकवादी बनता बड़का वाला तकरीर-कर्ता , प्रवचन कर्ता भाषणबाज 


वकील की फीस वह नहीं होती जिस पर वह काम करता है।  उसकी फ़ीस वह होती है जिस पर उसने काम करने से मना कर  दिया है 
कभी दुआ माँगता , कभी दवा माँगता ,
बीमार क्यूँ , ये हाल क्यूँ , नहीं जानता
कभी साँस मांगता कभी आश माँगता
मौत : जिंदगी ,क्या माँगू ,नहीं जानता। 
वे हाथ चलाते , कुछ करते कराते चलते रहे थे , मैं बस देखता रहा , आज वे एक दौर ,हकीकत के तूफान जैसे , आखिर मैं भी उनके पीछे लग लिया।
काश ! पहले होश आया होता

Monday, 4 September 2017

राजनीतिज्ञ एक ही विषय -विचार को भिन्न भिन्न रंग-पैकिंग में विभिन्न देश - समूह - क्षेत्र में सफलता पूर्वक मार्केटिंग के विशेषज्ञ होते है। 
पीड़ित को मुकदमे की उम्र और बढ़ती जा रही संख्या से सुलह के लिये बाध्य करने की रणनीति भी बढ़ती मुकदमेबाजी का कारण है। 
नरसिंहराव काल की टुटे मनोबल वाली कांग्रेस और डरी हुई संसद ने कॉलेजियम निर्णय का मार्ग प्रशस्त किया !!
उनका जितना प्रचार उनके विरोधियों ने किया उतना तो वे नौ जन्म में नहीं कर  पाते।  विरोधियों की गालियाँ उनको नायक बना ले गई। 

Sunday, 3 September 2017

तुम्हारी बददुआ  बहुत थी , उसका एक झीना सा आँचल काफी था।
ओट उसके आँचल की , तुम्हारी बद्दुआओं का खोट धरा रह गया  !!
मकान तो केवल वे ही बना सकते हैं जिन्हे इसकी ट्रेनिंग या तजुर्बा है। लोकप्रिय नेता के कारण चुनाव जीत जाने से कोई दक्ष प्रशासक भी हो जाये , जरूरी तो नहीं। 
वकील कोर्ट के लिये और कोर्ट वकील के लिये।  जनता , संविधान , जनमत , न्याय कहाँ जायेगा ?

Saturday, 2 September 2017

वक्त कभी इतना भी बुरा नहीं हुआ की एक और कोशिश न की जा सके। वक्त ने दरवाजे कभी बंद नहीं किये !

Friday, 1 September 2017

आपका धन आपका तो मेरा यश  ?
यदि आपके धन की छाया भी मेरी नहीं तो मेरे यश की शीतलता ?
काश ! मैं लोमड़ी , गीदड़ , भेड़िया , सियार , लकड़बग्घा होता !! कोई मेरी बली या क़ुरबानी तो नहीं देता , न पालतू बनाता !!!
अंग्रेजों के समय दो ही श्रेणी थी - लॉ ब्रोकर एवं ला ब्रेकर ! पहले वाले पीपी, जीपी ,जज बने: दूसरे वाले सारे बोले हम थे स्वतंत्रता सेनानी।  १९४७ के बाद दोनों मिल गये। 
अंग्रेजों के काल  से ही उस समय के सरकारी वकील सरकारी अधिकारीयों के निर्देश पर तथ्य तोड़ते -छिपाते थे , उपाधि पाते थे। आज भी वह हू बहू चल रहा है। 
बड़े सलेक्टिव अजब गजब लाइक और शेयर कर कम से कम मुझे तो एक संदेश दे जाते हो - पलकों  के नीचे कुछ भींग सा जाता है। 
पुरे समाज को बाध्य नहीं किया जा सकता , प्रेरित या आंदोलित किया या करवाया जा सकता है।  बाध्य नहीं प्रेरित करो - सफलता मिलेगी। 
किसी भी ब्यवस्था ,संस्था ,समाज की असली ताकत इतिहास में हो चुकी गलतियों को स्वीकार करने में है - पुनरावृत्ति -प्रतिशोध के आग्रह में नहीं। 
बहुमत भी संविधान के मूल स्वरूप और उल्लेखित मौलिक अधिकारों को आच्छादित करने का आधार नहीं हो सकता। 
केवल ब्यक्तिगत सदाशयता या निश्चय से ही नहीं होगा , सर्वजन की स्वेच्छया भागीदारी, प्रयास के लिये प्रशिक्षण और प्रतिबद्धता भी जरूरी है।