सारे निशान , और किताब जो दीवारें बुनते हैं ,
एक इंसान को छांटते , दुसरे को यूँ चुनते है
नुमाइश सितम की , तिजारत जज्बात की
अपनी ही कहते हैं , दूसरे की कहाँ सुनते हैं
समन्दर में सब को एक साथ डुबाया जाये
सब मिल कर दिन रात बस आग बुनते है
No comments:
Post a Comment