मैं किसी एक पुस्तक से बँधा नहीँ है ,यह हजारों साल का सँस्कार है ।सतत आत्मविवेचना ,समन्वय ,सुधार ही इसकी आत्मा है ।
अन्य धर्मावलम्बियों की तरह की अनमनीय असहिष्णुता का प्रचार प्रसार अशोभनीय आत्मघाती प्रयास है ।
जब मै अपने आपको एक बार और जाँचता हूँ तो मुझे ताड़ती निगाहों से देख आप स्व का हित नहीं कर रहे ।
पर मुझे विश्वास है , मैं.और मेरे निरंतर साफ हो विकसित हो रहे संस्कार आगे भी मेरे साथ होंगे ।
बस आत्मावलोकन की परम्परा को रोकियेगा मत ,दूसरों की देखा देखी ।
आन ,आन-बान न जुड़े , न जोड़े, बस तोड़े या फोड़े ।
खान-पान,अपना है ये ,न छूटे ,न छोड़े ,न छोड़ने दे ।
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