प्रकृति , जगत , हम- तुम , जल-थल-नभ -खग -मृग - ताल -तलैया -नदी -नाले -पहाड़ -वृक्ष - गाँव- जंगल , वर्षा -बयार , बसन्त -बहार , पसीना - हँसी , - उबासी-उबकाई , दौड़ना -झपट्टा मारना , जीना -मरना -- यह सब पसरा सामने यह सत्य ही तो है -- शेष कल्पना , बस इतना ही !
Tuesday, 30 May 2017
Monday, 29 May 2017
जिन्हे दान ही नहीं लेना वे सहानुभूति का क्या करेंगे ? विदाई वेला में कृपा , प्रेम , सहानुभति मिले भी तो क्या ?
अब और नहीं सालते तंज़ और मज़ाह , सारी जिंदगी बीती है इन्हीं के बीच !!
अहंकार कुलीन घर की कनीज़ है।
मेरे बुहारे रास्ते से भी छूत लगे तो मैं क्या करूँ।
मेरे बारे दिये की रौशनी से भी छूत लगे तो मैं क्या करूँ।
अब और नहीं सालते तंज़ और मज़ाह , सारी जिंदगी बीती है इन्हीं के बीच !!
अहंकार कुलीन घर की कनीज़ है।
मेरे बुहारे रास्ते से भी छूत लगे तो मैं क्या करूँ।
मेरे बारे दिये की रौशनी से भी छूत लगे तो मैं क्या करूँ।
Sunday, 28 May 2017
तुम्हारे आने की खबर थी
मैंने चार बताशे की उम्मीद पाल ली।
तुम खाली हाथ ही आये , आये तो सही।
कोई बात नहीं ,उम्मीद एक बार टूटी ,
दोबारा उम्मीद करने से मुझे कोई रोका है क्या।
तुम जाने के लिए बाहर निकलोगे
तो बाहर पछियारी खिड़की के पास से निकलना
दो पेड़े बनाये हैं सुबह दूध घाँट के , खस्ता है
हाथ फैला कर खिड़की से दे दूंगी
रास्ते में खा कर पानी पी लेना।
मैंने चार बताशे की उम्मीद पाल ली।
तुम खाली हाथ ही आये , आये तो सही।
कोई बात नहीं ,उम्मीद एक बार टूटी ,
दोबारा उम्मीद करने से मुझे कोई रोका है क्या।
तुम जाने के लिए बाहर निकलोगे
तो बाहर पछियारी खिड़की के पास से निकलना
दो पेड़े बनाये हैं सुबह दूध घाँट के , खस्ता है
हाथ फैला कर खिड़की से दे दूंगी
रास्ते में खा कर पानी पी लेना।
Saturday, 27 May 2017
Monday, 15 May 2017
Ask me to love you and others but do not ask me to hate him .
I never had any reason to love you but I never hated you .
You treated me with sheer contempt , You always deprived me of my human dignity . You carnally exploited me . I could not love you .
Did I ever hate or hurt you ?
Please no religious posts. No more insults for me . No more CHARNAMRIT for me .
Please excuse me .
I can still love .
But I can never hate nor preach hate.
मैं किसी एक पुस्तक से बँधा नहीँ है ,यह हजारों साल का सँस्कार है ।सतत आत्मविवेचना ,समन्वय ,सुधार ही इसकी आत्मा है ।
अन्य धर्मावलम्बियों की तरह की अनमनीय असहिष्णुता का प्रचार प्रसार अशोभनीय आत्मघाती प्रयास है ।
जब मै अपने आपको एक बार और जाँचता हूँ तो मुझे ताड़ती निगाहों से देख आप स्व का हित नहीं कर रहे ।
पर मुझे विश्वास है , मैं.और मेरे निरंतर साफ हो विकसित हो रहे संस्कार आगे भी मेरे साथ होंगे ।
बस आत्मावलोकन की परम्परा को रोकियेगा मत ,दूसरों की देखा देखी ।
आन ,आन-बान न जुड़े , न जोड़े, बस तोड़े या फोड़े ।
खान-पान,अपना है ये ,न छूटे ,न छोड़े ,न छोड़ने दे ।
मैं किसी एक पुस्तक से बँधा नहीँ है ,यह हजारों साल का सँस्कार है ।सतत आत्मविवेचना ,समन्वय ,सुधार ही इसकी आत्मा है ।
अन्य धर्मावलम्बियों की तरह की अनमनीय असहिष्णुता का प्रचार प्रसार अशोभनीय आत्मघाती प्रयास है ।
जब मै अपने आपको एक बार और जाँचता हूँ तो मुझे ताड़ती निगाहों से देख आप स्व का हित नहीं कर रहे ।
पर मुझे विश्वास है , मैं.और मेरे निरंतर साफ हो विकसित हो रहे संस्कार आगे भी मेरे साथ होंगे ।
बस आत्मावलोकन की परम्परा को रोकियेगा मत ,दूसरों की देखा देखी ।
आन ,आन-बान न जुड़े , न जोड़े, बस तोड़े या फोड़े ।
खान-पान,अपना है ये ,न छूटे ,न छोड़े ,न छोड़ने दे ।
क्या हजारों साल पहले जो निरूपित हुआ , पढ़ा-पढ़वाया -लिखा-लिखवाया ,सोचा-समझा गया वहीं जा कर मनुष्य को रूक जाना चाहिये क्योंकि वही सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ अन्तिम विकास का अन्तिम रूप है ?
पिछले हजारो साल की असंख्य पीढ़ियाँ और भावी पीढ़ियाँ क्या किसी काम की नहीँ ?
क्यों मुझे हजारों साल पुराने चरणस्पर्श से मुक्ति या चरणामृतपान से मुक्ति काल में ले जाना चाहते हो ।?
मैंने कौन सा पाप किया है कि मुझे अधम पाप पुँज, महापापी -प्रसिद्ध पातकी घोषित करवाने पर पड़े हो ?
तुम या वह कैसे तारण हार और पाप-पुँज-हारी ,मुक्तिदाता ?
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