Tuesday, 30 May 2017

प्रकृति , जगत , हम- तुम , जल-थल-नभ -खग -मृग - ताल -तलैया -नदी -नाले -पहाड़ -वृक्ष - गाँव- जंगल , वर्षा -बयार , बसन्त -बहार , पसीना - हँसी , - उबासी-उबकाई , दौड़ना -झपट्टा मारना , जीना -मरना -- यह सब पसरा सामने यह सत्य ही तो है -- शेष कल्पना , बस इतना ही !
कितने उदार है वे लोग जो मेरी एक प्रोफ़ाइल पर लगातार २५ मिनट से लगे होते हैं वह भी कभी कभार नहीं अक्सर -  कैसे धन्यवाद कहूँ !
एक दिन का उपवास - घड़ी , कैलेंडर , न्यूज पेपर , पत्रिका , टीवी , सिनेमा , स्मार्ट फोन या अन्य कोई फोन , गाड़ी , बाजार का खाना - इन सबका उपवास -- आइये ट्राई करें 

Monday, 29 May 2017

जिन्हे दान ही नहीं लेना वे सहानुभूति का क्या करेंगे ? विदाई वेला में कृपा , प्रेम , सहानुभति मिले भी तो क्या ?
अब और नहीं सालते तंज़ और मज़ाह , सारी जिंदगी बीती है इन्हीं के बीच  !!
अहंकार कुलीन घर की कनीज़ है।
मेरे बुहारे रास्ते से भी छूत लगे तो मैं क्या करूँ।
मेरे बारे दिये की रौशनी से भी छूत लगे तो मैं क्या करूँ। 
ब्यंग्य वाण अक्सर ईर्ष्या के धनुष पर अहंकार के पराक्रम के सहारे

Sunday, 28 May 2017

मुझे अनफ्रेंड करने के ऑप्शन आपको उपलब्ध तो हैं न , फिर उनका उपयोग क्यों नहीं करते ?
एक हत्या और उससे उपजी सहानुभूति
कब तक इस टेक्निक और पूंजी के सहारे ?
बचपन की खुद को शर्मिंदा कर  देने वाली शरारतें
आज मेरे गर्व करने वाली षड़यंत्र से साफ सुथरी थी। 
रत में सिरहाने रख कर  सोया था जिन जज्बातों को 
सुबह उठ देखा हर तह पर नरम हथेलियों  की सुवास थी 
तुम्हारे आने की खबर थी
मैंने चार बताशे की उम्मीद पाल  ली।
तुम खाली हाथ ही आये , आये तो सही।
कोई बात नहीं ,उम्मीद एक बार टूटी ,
दोबारा उम्मीद करने से मुझे कोई रोका है क्या।

तुम जाने के लिए बाहर निकलोगे
तो बाहर पछियारी खिड़की के पास से निकलना
दो पेड़े बनाये हैं सुबह दूध घाँट के , खस्ता है
हाथ फैला कर खिड़की से दे दूंगी
रास्ते में खा कर पानी पी लेना। 
गाय-बछड़ा अकेले पशु है जिसका जिक्र संविधान में किया गया, अकारण था क्या
 जोड़ा बैल की भारतीय जन मानस  में भावनात्मक अपील थी उसे खूब  भंजाया गया  ,
गाय बछड़ा  की धार्मिक और भावनात्मक अपील थी ,सरे आम उसे बड़ा  भंजाया गया
वहाँ से चले थे , खूब फले  फुले  थे  और आज मामला  फिर उसी गाय उसी बछड़े पर आया 
कभी कभी बस मन इतना करता है,अपनों के साथ सरे आम खड़े हो रहने का ,
अपनों का कुछ हक तो पहले भी होता था ,मैं ही उदार होने की कोशिश करता था
कौन सही है या कौन गलत , यह फैसला तो फिर कभी ,अभी अपनों के साथ।
पराये तो पराये ही थे , हैं , रहेंगें कहीं उनके चक्कर में  अपने भी छूट गये तो।

Saturday, 27 May 2017

सारे निशान , और किताब जो दीवारें बुनते हैं ,
एक इंसान को  छांटते  , दुसरे को यूँ चुनते है 
नुमाइश सितम की , तिजारत जज्बात की 
अपनी ही कहते हैं , दूसरे की कहाँ सुनते हैं  
समन्दर  में सब को एक साथ डुबाया जाये 
सब मिल कर दिन रात बस आग बुनते है 

क्या क्या पढ़ जाते हो
कैसे ये सब पढ़ पाते हो।

कुब्जा स्पर्श , अहिल्या स्पर्श , राम-भरत स्पर्श , राम हनुमान स्पर्श , राम जटायु स्पर्श , .... पूतना स्पर्श , सुदामा स्पर्श , राधे- स्पर्श , रैदास स्पर्श , रामानंद-स्पर्श , परशुराम-स्पर्श ,
बात होती है  आज की , अभी की , और मेरी
और इतराये वह जो चला गया  या जायेगा।
उगाया,किया, कराया, सजाया सब आज का
मौज करे लहराये , सजे धजे हमारा इतिहास। 

Monday, 15 May 2017

Ask me to love you and others but do not ask me to hate him .
I never had any reason to love you but I never hated you .
You treated me with sheer contempt , You always deprived me of my human dignity . You carnally exploited me . I could not love you .
Did I ever hate or hurt you ?
Please no religious posts. No more insults for me . No more CHARNAMRIT for me .
Please excuse me .
I can still love .
But I can never hate nor preach hate.
अपने आप को कानून पढ़ाओ , खुद कनून पढ़ो , जानो ,सीखो ।
कानून की बढ़ती ब्यापकता देख यह स्पष्ट है कि अब कानून की सम्यक जानकारी से ही सुरक्षा , सम्पन्नता , स्वतंत्रता , स्वाभिमान पकी रक्षा हो सकती है ।
केवल खरीदे गये कानूनी ग्यान के भरोषे न रहे ।
स्वयं को कानूनी रुप से सशक्त बनावें ।
धन्यवाद ही अन्तिम दान है ।दो बूँद आँसू ही अन्तिम समर्पण ।स्वरक्षा ही अन्तिम शस्त्र ।स्वविवेक ही अन्तिम ग्यान ।
मनोरंजन या सूचना के लिये जुड़े हैं जो उनका चला जाना ही भला ।
जो लड़े -झगड़े , धोये माँजें ,ले या दे , जाँचें ,बताये , सुझाये सो ही भला ।
वैसे स्वागत सबका !
मैं किसी को जाने को क्यों कहूँ ?
मैं किसी एक पुस्तक से बँधा नहीँ है ,यह हजारों साल का सँस्कार है ।सतत आत्मविवेचना ,समन्वय ,सुधार ही इसकी आत्मा है ।
अन्य धर्मावलम्बियों की तरह की अनमनीय असहिष्णुता का प्रचार प्रसार अशोभनीय आत्मघाती प्रयास है ।
जब मै अपने आपको एक बार और जाँचता हूँ तो मुझे ताड़ती निगाहों से देख आप स्व का हित नहीं कर रहे ।
पर मुझे विश्वास है , मैं.और मेरे निरंतर साफ हो विकसित हो रहे संस्कार आगे भी मेरे साथ होंगे ।
बस आत्मावलोकन की परम्परा को रोकियेगा मत ,दूसरों की देखा देखी ।
आन ,आन-बान न जुड़े , न जोड़े, बस तोड़े या फोड़े ।
खान-पान,अपना है ये ,न छूटे ,न छोड़े ,न छोड़ने दे ।
मैं किसी एक पुस्तक से बँधा नहीँ है ,यह हजारों साल का सँस्कार है ।सतत आत्मविवेचना ,समन्वय ,सुधार ही इसकी आत्मा है ।
अन्य धर्मावलम्बियों की तरह की अनमनीय असहिष्णुता का प्रचार प्रसार अशोभनीय आत्मघाती प्रयास है ।
जब मै अपने आपको एक बार और जाँचता हूँ तो मुझे ताड़ती निगाहों से देख आप स्व का हित नहीं कर रहे ।
पर मुझे विश्वास है , मैं.और मेरे निरंतर साफ हो विकसित हो रहे संस्कार आगे भी मेरे साथ होंगे ।
बस आत्मावलोकन की परम्परा को रोकियेगा मत ,दूसरों की देखा देखी ।
आन ,आन-बान न जुड़े , न जोड़े, बस तोड़े या फोड़े ।
खान-पान,अपना है ये ,न छूटे ,न छोड़े ,न छोड़ने दे ।
आपकी आस्था से मैं संघर्ष नहीं करता तो आप मेरी आस्था से विवाद करने के अधिकारी कैसे
रामराज्य कथाकारी क्या स्त्री उत्पीड़न की कथा-रचनाकारी नहीँ है ।
एक भी स्त्री पात्र के प्रति न्याय नहीं ।
क्या हजारों साल पहले जो निरूपित हुआ , पढ़ा-पढ़वाया -लिखा-लिखवाया ,सोचा-समझा गया वहीं जा कर मनुष्य को रूक जाना चाहिये क्योंकि वही सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ अन्तिम विकास का अन्तिम रूप है ?
पिछले हजारो साल की असंख्य पीढ़ियाँ और भावी पीढ़ियाँ क्या किसी काम की नहीँ ?
क्यों मुझे हजारों साल पुराने चरणस्पर्श से मुक्ति या चरणामृतपान से मुक्ति काल में ले जाना चाहते हो ।?
मैंने कौन सा पाप किया है कि मुझे अधम पाप पुँज, महापापी -प्रसिद्ध पातकी घोषित करवाने पर पड़े हो ?
तुम या वह कैसे तारण हार और पाप-पुँज-हारी ,मुक्तिदाता ?
आन ,आन-बान न जुड़े , न जोड़े, बस तोड़े या फोड़े ।
Strangers (आन ,अन्य ), and ego (आन-बान )never unite but cause rift.
खान-पान,अपना है ये ,न छूटे ,न छोड़े ,न छोड़ने दे ।
Own men and culture never leave nor allow to leave .