Thursday, 18 February 2016

रास्ते और विकल्प अनन्त हैं, परस्पर विरोधी- प्रतियोगी भी हो सकते है या न भी हो तो दिख सकते हैं , सदैव लक्ष्य या मंजिल भी सामने नहीं दिखते, आगे क्या -कैसा है ; बहुत हुछ अनजान .
पर आगे तो चलना ही है , एक निर्णय ले , एक रास्ता तो चुनना ही है, बाकी को तो छोड़ना ही पड़ेगा .
स्वरक्षित होना है तो पराश्रयी तकसुरक्षा का लोभ तो छोड़ना ही पड़ेगा.

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