Thursday, 18 February 2016



क्या हमारे बाद वाली पीढ़ियों को भी हम इसी ब्यवस्था में जीने के लिये मजबूर करने जा रहे हैं - यही ट्रैफिक ब्यवस्था, यही पुलिस स्टेशन , यही कोर्ट कैम्पस, यही होस्पीटल कैम्पस ,यही रेलवे प्लेटफार्म ,यही रेलें ,अपराधों की यही जाँच ,अनुसंधान ,विवेचन, विचारण, दस्तावेजों के स्थ यही खिलवाड़ और दस्तावेज धारको की यही पीड़ा, हताशा, दयनीय स्थितिऔर यही मुकदमों से दबी केवल कानून दर कानून और अपेक्षा झेलती खुद उपेक्षित न्याय प्रणाली, बजबजाती नालियों नुमा नदियाँ, एक्सपायरी आर्म्स से लैस सेना, हमारे द्वारा छोड़े गये प्लास्टिक के कूड़े से अटी पड़ी पहाड़ की तलहटी और चोटियाँ, ईनजेक्सन वाली सब्जी, गाय , मछली , किताब ढोते बच्चे, पोर्न देखते जवान और तरह तरह के टुकड़ों में बाँटते बुजुर्ग

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