अब और नहीं सालते, तंज़ औ म़ज़ाह (व्यंग और मजाक),
सारी जिन्दगी बीती है, इन्हीं के बीच।
मुझे क्या ह़क़, क्या दिया मेंने, दुआ के लिये,
गलती ही नहीं, क्षमा कैसी, दुआ है तुम्हारे लिये ।
हाशियें पर थे हम तब भी,गिल़ा नहीं की
लड़ते हुए यहाँ तक आया,छाती चौड़ी कब की।
आप से मेरा क्या मुकाबला,विरासत आपके साथ है
कोई शिकवा भी क्या,मेरी विरासत मेरे हाथ हैं
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