हर लिफाफा देख कर जी क्यों नहीं घबरा जाता ,
खुशियाँ क्यों चली आती है
काली रात की चादर उतार कर
हर बार नया सबेरा क्यों चला आता है
हर हार के बाद भी, दोबारा हिम्मत बांधे,
धावक दौड़ने क्यों चलाआता है
हर पर्दे को देख कर जी क्यों नहीं घबरा जाता ,
खुशियाँ क्यों चली आती है
बीगड़े बेटे की माँ,
भटकी बेटी का बाप,
निराश क्यों नहीं हो जाता है
पुचकार -दुलार- समझा कर,
हर बार, खुशियाँ क्यों चली आती ह
बाढ़ ,सूखै की मार पर भी
,किसान फिर खेत पर क्यों चला आता है
हादसों से नहीं हारता
-फिर उठ जाता जीवन
,बस खुशियाँ चली आती है
खुशियाँ क्यों चली आती है
काली रात की चादर उतार कर
हर बार नया सबेरा क्यों चला आता है
हर हार के बाद भी, दोबारा हिम्मत बांधे,
धावक दौड़ने क्यों चलाआता है
हर पर्दे को देख कर जी क्यों नहीं घबरा जाता ,
खुशियाँ क्यों चली आती है
बीगड़े बेटे की माँ,
भटकी बेटी का बाप,
निराश क्यों नहीं हो जाता है
पुचकार -दुलार- समझा कर,
हर बार, खुशियाँ क्यों चली आती ह
बाढ़ ,सूखै की मार पर भी
,किसान फिर खेत पर क्यों चला आता है
हादसों से नहीं हारता
-फिर उठ जाता जीवन
,बस खुशियाँ चली आती है
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