Thursday, 5 February 2015

मौसम इतना सुहावना हो जायेगा , यह कभी प्ताहिन्हीं था .पतझड़ के सिवा कुछ कल्पना में ही नहीं आता  था. निराशा के आलावा कभी कुछ देख भी पाऊँगा  ,सोचा भी न था .
और एकाएक सब कुछ बसंत -बहार से भर गया .आशा के अनंत दीप एक एक कर जलते चले गये . हर अंधकार खुद ब खुद छंट सा गया . प्रकाश तन-मन-प्राण में उतरता सा चला गया .शुभ्र उज्जवल प्रकाश में बी कुछ डूबा कर प्रकाश स्वरूप होता गया . आनंद ही बस शेष रह गया . अनंत आनन्द , अखंड आनंद , अतुल आनन्द
,अभेद्य आनंद , अविरल आनन्द ,अविचल आनन्द .

No comments:

Post a Comment