केवल जीवंत समाज ही समवेत समाज की अपनी सम्पूर्ण चेतना , धारणा ,श्रद्धा ,विश्वास , मूल्य को बार बार जंचता परखता रहता है . परिवर्तन की सतत स्थिति में यही उचित है .नये प्रसंग में पुरानी स्थापनाओं की ब्याख्या होते रहना उचित जान पड़ता है .यदि ऐसा नहीं किया गया तो इतिहास , पुराना सब कुछ निरर्थक होता जायेगा ,अप्रासंगिक हो ही जायेगा .
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