Thursday, 4 December 2014

यह व्यवस्था वस्तुतः कुलीनतंत्र का ही दूसरा रूप है .यह व्यवस्था जनतंत्र से प्रतियोगिता रखती है .यह व्यवस्था एक न्यायाधीशतंत्र पैदा करना चाहती है .
मैनें यह प्रश्न कई बार पूछा है - क्या न्यायाधीशतंत्र , जनतंत्र से अच्छा होगा.मैंने कई बार पूछा-यह न्यायाधीशतंत्र क्या शुद्ध कूलिनतंत्र नहीं होगा .
हे परमात्मन , ! मुझे कुछ सौ ऐसे न्यायाधीश दो जिन्हें किसी भी प्रकार दूषित नहीं किया जा सके , जो दूषित नहीं हो ,.
हे देश के अध्यापकों, हे इस देश के विद्यालयों ,-विश्वविद्यालयों ! हे इस देश की वीर माताएँ ! शुद्ध अंतःकरण वाले हज़ार -पांच सौ ऐसे न्यायाधीश तो पैदा किया करो - सब कुछ बदल जायेगा--------

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