Sunday, 14 December 2014

एक भी दिया जो जल सका मेरे जिगर के सनेह से
तो मैं सारी जिन्दगी यूँ ही सनेह टपकाता रहूँगा !!!
आह और वाह के लिये जी कर ही क्या तो करना है
समन्दर को दरिया तक ले जाना ही मकसद मेरा है .
वक्त तो लगेगा , जानता हूँ समन्दर बहुत भारी है
अडियल दरिया कम तो नहीं है जाने कब मानेगा
जमाना तो समझ जायगा ही ,आज नहीं तो कल
सवाल मेरे अपने समझने का,वह कबतक मानेगा

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