Friday, 12 December 2014

वृक्ष भले ही एक हो ,
फुनगियाँ अनन्त होती है
फुनगती ये फुनगियाँ
ही तो वृक्ष है
जड़ के साथ निकलती
शाख -दर-शाख निकलती
फैलती रहती वृक्ष को हर और
ये फुनगियाँ ही तो वृक्ष को
आसमान तक पहुंचाती है
इसी लिये तरु-शिखर
हैं नाचते
अनंत शिखर ,उतुंग शिखर
इन्हीं शिखरों पर बसती
सुनहरी धुप ,
मधुर चंचल कलरव
नव-खग -जीवन
और मेरे सपने
बचपन में पलने में पला
मेरा सपना शिखर चदते चला
अभी शिखर और भी बाकी है
 तुम्हारे लिए ,और मेरे लिये भी
बस हिम्मत मत हारना
शिखरों से मत घबराना
शिखर आज ,अब भी है
सबके लिए , सदैव



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