Thursday, 11 December 2014

यह कैसा तर्क है -कैसी प्रार्थना है- मुझे तो समझ में नहीं आती -----

मैं तुम्हारी शरण में आ गया ,मैनें तुम्हारा आश्रय ले लिया , तुम्हारे साथ हो लिया , तुम्हारा हो गया- मुझे अपना बना लो ,मेरी गलतियों को मत देखो ,मेरे सारे  पापों को जानते हुए भी चूँकि मैं अब तुम्हारी शरण में आ चूका हूँ , अतएव मुझे सरे पापों के सारे प्रभाव से मुक्त कर दो और मुझे निर्मल कर दो  -----
बिना प्रयश्चित के ? बिना दंड के ?  आखिर यह कैसे किया ही जा सकता है । पापों के सम्बन्ध में अभय दान कैसे दिया जा सकता है।
जिसके प्रति पाप किया गया उसका रंच मात्र भी विचार नहीं , जिक्र तक नहीं।
पीड़ित के बारे में कौन विचारेगा?
कोई यह कैसे कह सकता है की सभी को छोड़ मेरे पास आओ , मैं तुम्हारे सारे पाप हर लूँगा।
आप पापी की रक्षा कैसे करेंगे।

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