Thursday, 12 June 2014

दिये की तरह यूँ रात दिन जलता ही रहा हूँ
याद कर बताओ जरा , कब रौशनी मांगी है .

नदी की तरह यूँ रात दिन बहता ही रहा हूँ
याद कर बताओ जरा ,कब पानी माँगा है

भरी दुपहरिया खरी धुप में जलता ही रहा हूँ
याद कर बताओ जरा कब छाँव मांगी है

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