Sunday, 29 June 2014

परम्पराओं को अपना स्वामी ,अधिनायक मत बनने दो ,उनके गुलाम मत बन जाना ,आगे बढने के लिए नई परम्पराओं की नींव डालनी पड़ती है ,नया सोचना , करना , चलना पड़ता ही है और इसके लिये पुराने को छोड़ना भी पद सकता है - परम्पराओं को -इतिहास को अपनी कमजोरी मत बनने दो , उन्हें अपनी ताकत बनाओ , 
उनका मोह -पाश हम सबका भविष्य ही ब्लोक कर दे , उचित नहीं होगा .
इतिहास को इतिहास हो जाने दो . वर्तमान में इतिहास की दखलंदाजी से बचो -बचाओ 
 माँ -बाप की अत्यधिक दखलन्दाजी से बहुत से दम्पत्ति का जीवन दुखमय हो जाता है - माँ बाप का अधिक लाडप्यार सन्तान को उदंड बना देता है और अत्यधिक नियन्त्रण या देखरेख सन्तान को स्वावलम्बी बनने में बाधा पहुँचता है --- जिनको माँ बाप की देखरेख कम मिली होती है वे असफल ही होते हो ऐसा तो नहीं ही है .--- वैसे हर माँ बाप अपनी सन्तान को अपने से आगे ही देखना चाहते हैं --पुत्रात पराजयेत -- आगे बढ़ ,मुझ पर विजय पा ,मुझसे श्रेष्ठ बन .
इतिहास तथा वर्तमान में सदैव कार्य -कारण का सम्बन्ध नहीं होता --- इतिहास के गर्भनाल से बंधे वर्तमान का कोई न तो इतिहास होता है न ऐसे वर्तमान को किसी इतिहास में स्थान मिलता है - न भूतो न भविष्यति ही इतिहास में जगह बनाते है ,पुराने को छोड़ जो चले आगे उनका ही इतिहास स्वागत करता है .
 मै जो भी आने वाला है ,उसी के साथ खड़ा मिलूँगा , चाहे इसका मूल्य मेरी खुद की उपेक्षा ही क्यों न हो ,

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