Saturday, 25 January 2014

दिये का तो था इमान रौशनी। दिया न रहा ,तो कहाँ रौशनी। बुझा दिया ,तो कहाँ रौशनी।

आखिर दिया बुझ ही तो गया
देखो जरा ,दिया क्या ले गया।

सारी रौशनी कहाँ चली गयी
दिया चुरा तो नहीं ले गया।

बुझे दिए के सिरहाने खोजो
रौशनी छिपा तो नहीं गया।

जला दिया तभी थी रौशनी
जल चूका , तो कहाँ रौशनी।

दिये को तो तुमने बझाया
बुझा दिया ,तो कहाँ रौशनी।

रौशनी दिये में दिये से थी
दिया न रहा ,तो कहाँ रौशनी।

अँधेरा तुम्हारा निगाहें तुम्हारी
दिये का तो था इमान  रौशनी। 








   

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