नदियाँ रोती रही ,
कॊई कृष्ण नहीं आया
चीर हर लिया गया
कृष्ण नहीं ही आया।
भगीरथ तुम कहाँ रुक गये.
पर्वत नंगे खड़े
बिना नीर नदियाँ
या की फिर केवल
केदार सा शैलाब।
बच्चे को धक्का देते
अपनी जान बचाते माँ -बाप
बहती तिजोरियाँ
बेसुध लाशे।
कृष्णा ,केदार,बद्री
तुम देखते रहे
और नदी नाले पहाड़
सब लूट लिये गये
या
लालचासुर खा गया
विकास या टुरिज्म ने
चिर हरण कर लिया
धृतराष्ट्र अँधा बना बैठा था
भीस्म मौन थे
पांडव श्रीहीन
कौरव मदमस्त।
नदी ,पहाड़ सारे लूट लिए गए
कॊई कृष्ण नहीं आया
चीर हर लिया गया
कृष्ण नहीं ही आया।
भगीरथ तुम कहाँ रुक गये.
पर्वत नंगे खड़े
बिना नीर नदियाँ
या की फिर केवल
केदार सा शैलाब।
बच्चे को धक्का देते
अपनी जान बचाते माँ -बाप
बहती तिजोरियाँ
बेसुध लाशे।
कृष्णा ,केदार,बद्री
तुम देखते रहे
और नदी नाले पहाड़
सब लूट लिये गये
या
लालचासुर खा गया
विकास या टुरिज्म ने
चिर हरण कर लिया
धृतराष्ट्र अँधा बना बैठा था
भीस्म मौन थे
पांडव श्रीहीन
कौरव मदमस्त।
नदी ,पहाड़ सारे लूट लिए गए
The author of this blog deserves kudos for his unreserved depiction of
ReplyDeletebitter events and experiences of life, his intense desire to live, his
indomitable instinct to overcome hurdles and defy failures, his
unshaken trust in truthfulness and other virtues despite adverse
circumstances,his empathy for the oppressed and the needy,his deep
anguish on destruction of values in society, his subtle observation of
human behavior and for every good things his write-ups have. Salute
once again !-B K PACHERIWALA