Tuesday, 28 January 2014

योग्यता से मजदूरी मिलती है।
 कृपा योग्यता  से प्राप्त नहीं होती।  भीख भी योग्यता से नहीं मिलती ,दीनता पर मिलती है , वह भी   गिड़गिड़ाने ,नाक रगड़ने से मिलती है।
 मजदूरी के हकदार लड़ कर मजदूरी लेने के अभ्यस्त हो चुके होते है  अतः वे जहाँ भीख मिला करती है वहाँ मिसफिट हो जाते है। ,हाथ फैला कर  कुछ मांगना उनकी फितरत में नहीं ,फिर चाहे भीख में राज्य ही क्यों न मिल रहा हो।
योग्य होने का यह बड़ा नुकसान है कि कृपा प्राप्त करने की कला आदमी सीख  ही नहीं पाता ,और कृपा वाले क्षेत्र की उपलब्धियों से अक्सर दूर ही रह जाता है।
शायद योग्य ब्यक्ति स्वाभिमान के नाम पर बलिदान हो जाया करता है।
योग्य होने से उत्तराधिकार प्राप्त नहीं होता ,वह तो उत्तराधिकारी होने से ही प्राप्त होगा चाहे आप कैसे भी हो। इसी प्रकार दान किसी की दया से ही प्राप्त हो सकता है ,केवल पात्र होने से नहीं।
आपका स्वाभिमान दूसरे समर्थ लोगों को एक चुनौती भी तो देता है , अहं का टकराव पैदा करता है।
कृपा प्राप्त करने के लिये समर्पण की आवश्यकता होती है  और समर्पण करना सभी के बस की बात तो है नहीं।
कृपा या दान के लिए लॉयल्टी  पहली शर्त है। योग्य होने से कुछ नहीं होता ,लॉयल होने से ही होता है। 

No comments:

Post a Comment