Sunday, 12 January 2020

क्यूरेटिव वकीलों द्वारा ईजाद किया शब्द है जिसे किसी वकील ने किसी मुकदमें में हार जाने के बाद भी पेटिशन दिया।
अब यह न तो अपील थी, न रिवीजन, न रिव्यू, न रिट, तो उसने अपने पेटिशन का नाम ही रख दिया कि यह क्यूरेटिव पिटीशन है और कोर्ट ने इसी नाम को लिख कर खारिज कर दिया।
बस क्यूरेटिव पिटीशन की नींव पड़ गयी।
एक और प्रयास के लिये पेटिशन देने से तो नहीं रोक सकते।
मरता क्या नहीं करता।
एक और प्रयास।
कभी कभी भारी कोस्ट भी लग जाती है।
मवक्किल को बताया जा चुका है।
मवक्किल तो हार ही चुका है।
हारने के बाद अपील, रिवीजन, रिव्यू, रिट यही सब न रास्ता है।
वकील ने वह सब भी किया।
वकील न तथ्यों को बदलेगा, न कानून को।
अपने मवक्किल की उम्मीद के अनुसार कोर्ट से एक आदेश लेने का प्रयास करेगा यदि मवक्किल वकील की फीस और परिणाम भुगतने को तैयार है।
वैसे भी परिणाम तो मवक्किल को ही भोगना है, वकील को तो फीस मिलेगी या यश, नाम, प्रसिद्धि।
बस जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो वकील फिर से कोई नई तर्क वुद्धि लगा, नई दलील लगा जब जबरदस्ती पेटिशन देता है तो इसको क्यूरेटिव पिटीशन , मर्सी पेटिशन, पेटिशन on ह्यूमेनुइटेरियन ग्राउंड आदि नाम देते रहता है, शायद बिल्ली के भाग्य से छीका टूट ही जाए।
जज डाँट भी देते है, गर्म भी हो जाते है, कोस्ट भी लगा देते है पर विनम्रता से वकील मवक्किल के प्रति अपना धर्म निबाहते है।
जज वकील का मालिक नहीं।
वकील की नियुक्ति ही ब्यक्ति के अधिकार के लिए राजा के सन्मुख भी निर्भय हो उपस्थित होने में लिये है।
हाँ, वकील का अपना केवल फीस भर से, यश या अपयश भर से ही मतलब है।
अधिकांश मुकदमों में वकील मवक्किल को केवल अपने प्रयासों का ही आश्वासन देता है, आदेश क्या होगा, वकील न जानता है, न आश्वासन देता है।क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीमकोर्ट के अपने क्षेत्राधिकार की चीज है। सुप्रीमकोर्ट अपने किसी भी निर्णय को कभी भी पुनः विचार कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट स्वयं ही इसकी रूपरेखा बनाता बदलता है, यह पूर्णतः सुप्रीमकोर्ट का विवेकाधिकार है।कौन जाने कभी कोई बात किसी जज को समझ मे आ ही जाये !! बस वकील लगातार इसी उम्मीद में भिन्न भिन्न लेबल लगा न्यायालय से प्रार्थना करते रहते है। दिन हो या रात, व्यक्ति के अधिकारों के लिये प्रार्थना होती है, खास कर जव ब्यक्ति के जीवन के अस्तित्व का ही प्रश्न हो, हाँ या ना के बीच मे झूलता जीवन, सुप्रीम कोर्ट से ही शायद कुछ मिल ही जाए, बस इसी उम्मीद में प्रयास।

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