भारत में नवोन्मेषी प्रयोगधर्मी चैतन्य मस्तिष्क को सम्मान नहीं मिलता है।
शुद्ध खोजी प्रकृति को लोग बाग बर्दास्त ही नहीं कर पाते। हर जगह लालफीताशाही और यथास्थिति वादी।
भारत में सम्भवतः पहले से लिखी, सोची, प्रमाणित बातों , तथ्यों, स्थापना के आगे बढ़ कर सोचने, करने वाले को स्वीकार करने में बहुत अधिक और निम्न स्तरीय प्रतिरोध होता है।
यह प्रतिरोध उत्साह की हत्या कर देता है, कई बार घृणित हो जाता है।
मशीनों, वस्तओं,पदार्थों पर ही निवेश करते है, आविष्कार परियोजना, प्रयोगों, अनुसन्धानों, अनुसन्धान तकनीकों पर निवेश के लिये आगे नहीं आते, अनुसन्धान का बजट वहुत कम है, R n D पर घ्यान नहीं दे पाते।
बौद्धिक संपदा संरक्षण के मामले में हम बहुत पीछे है। हमारा समाज अभी भी बैद्धिक संपत्ति के विकास, नियमतिकरण, मूल्य महत्व आदि को नहीं समझ पा रहा।
बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर आवश्यक निवेश बहुत कम है।
यदि वन टाइम निवेश कर भी दिया जाता है तो उसका रख रखाव एकदम अविश्वसनीय घटिया तरीके से है। केवल बर्बादी है।
सहायक मानव संसाधन अत्यंत गैर जिम्मेवार है।
मानव मेधा की सफलता का लाभ तो ले सकते है पर हानि उठाने को समाज तैयार नहीं है।
अनुसंधानकर्ताओं, योजना तैयार करने वालों से अधिक सम्मान मैनेजर को दिया जाता है।
भारत का उद्यमी पढ़े लिखे बौद्धिक दिमाग को मजदूर समझ उसे उचित प्रोत्साहन, पारिश्रमिक नहों देते।
सरकार का अपना बजट कम तो है ही है, जो है भी वह समुचित प्रतिभाओं को खोजने , उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाय भाईभतीजावद और निजी स्वार्थों की भेंट चढ़ जाता है।
अवसरों की राजनैतिक बंदरबांट हो जाती है।
समर्थ के लिये अवसर को अयोग्य से भर दिया जाता है। समर्थ निराश और कुंद हो बाहर जाने को विवश होता है। वास्तविक प्रतिभा के साथ समय पर सहयोग नहीं हो पाता।
अतएव मेधावी नवोन्मेषी प्रयोगधर्मी प्रोत्साहन, संरक्षण, समुचित पारितोषिक और सम्मान, अवसर के अभाव में भारत के बाहर चले जाते है।
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