Wednesday, 22 January 2020
Tuesday, 14 January 2020
एक छोटी सी कहानी पढिये
लगभग दस साल का अख़बार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।(उस दिन अखबार नहीं छपा होगा)
मालकिन - बाहर आकर पूछी "क्या है ? "
बालक - "आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?"
मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना।"
बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।"
मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?"
बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।"
मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना..!
(लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।)
मालकिन- ऐ लड़के..! पहले खाना खा ले, फिर काम करना।
बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।
मालकिन - ठीक है ! कहकर अपने काम में लग गयी।
बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।
मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ।
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया! बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।
मालकिन - भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। जरूरत होगी तो और दे दूंगी।
बालक - नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है।सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है।
मालकिन रो पड़ी..और अपने हाथों से मासूम को उसकी दुसरी माँ बनकर खाना खिलाया..
फिर... उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई .. और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी ..
और कह आयी .. बहन आप बहुत अमीर हो ..
जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं!.
इस बच्चे की ईमानदारी ने मुझे अपने गिरेबान में झांकने को मजबूर कर दिया।
Sunday, 12 January 2020
किसी अपराध के सम्बंध में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हमसे नाम, पता, ब्यक्तिगत विवरण पूछ सकती है।
एक बार गिरफ्तार हो जाने के बाद आरोपी ई श्रेणी में आने के बाद पुलिस हमसे कोई भी ऐसी बात नहीं पूछ सकती जो हमे किसी अपराध की स्वीकारोक्ति के रूप में उपयोग हो सकता है। हमे गिरफ्तार होने के बाद चुप रहने का अधिकार है। पुलिस जबाब देने के लिये भी मर पीट या बल प्रयोग या यातना नहीं दे सकती।
पुलिस को गिरफ्तारी के चौबीस घण्टे के अंदर न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना ही होगा।
दण्डाधिकारी को गिरफ्तार ब्यक्ति पुलिस ज्यादती, दुर्बयवहार की शिकायत कर सकता है।
गिरफ्तारी का कारण जानने का हक़ है।गिरफ्तारी की स्थिति में अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने किसी रिश्तेदार, मित्र, परिवार को मिले यह आपका अधिकार है।
यदि आपको सरकारी राशि के भुगतान के सम्बंध में गिरफ्तार किया जा रहा है तो आपको भुगतान कर तुरन्त मुक्त होने का अधिकार है।
यदि आपको जमानतीय प्रकृति के आरोप के सम्बंध में गिरफ्तार किया जा रहा है तो आपको जमानत का अधिकार है।
यदि आप को केवल अर्थदण्ड के भुगतान के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है तो तत्काल भुगतान कर मुक्ति का अधिकार है।
गिरफ्तारी की स्थिति में आपको वकील से परामर्श का अधिकार है
गिरफ्तारी की स्थिति में पुलिस आपको हथकड़ी नहीं लगा सकती, कमर में रस्सा नहीं लगा सकती, आपकी मानवीय गरिमा का हनन नहीं कर सकती, पुलिस को आपके स्वास्थ्य और दैनिक नित्य प्रकृतिक क्रियाओं का समुचित ध्यान रखना होगा।
पुलिस आपको किसी भी स्थिति में मार पीट नहीं कर सकती। गिरफ्तारी के लिए भी अनुचित बल प्रयोग नहीं कर सकती। पुलिस द्वारा आपको कोई भी मारपीट, अभद्र ब्यवहार अपराध है। आप इसके लिये पुलिस पर मुकदमा कर सकते है। यह मानवाधिकार उल्लंघन का भी मामला बनता है। आप पुलिस के खिलाफ कोर्ट भी जा सकते है।
रियल ईस्टेट वकील जमीनों के निर्विवाद कानूनन स्वीकृत सरकारी दस्तावेज जो अन्तिमता पा चुके है जैसे सरकारी सर्वे जी फाइनल हो प्रकाशित हो चुका है से आज तक के जनिन हस्तांतरण की कड़ी को जोड़ कर आपको सलाह देते है। ये कड़ियां कितनी विश्वसनीय है या विवादित यह वकील नहीं बता सकता। सरकारी रेकर्ड में जमीन की प्रविष्टि किस नाम पर थी और क्रमशः कैसे कैसे बदली यह आपको बताया जा सकता है।
जमीन की प्रकृति क्या है, वह हस्तांतरणीय है भी या नहीं , है तो किसके द्वारा, क्या जमीन के हस्तांतरण के लिए किसी अधिकारी की पूर्व अनुमति लेनी होगी, क्या जमीन सामान्यतः हस्तांतरणीय ही नहीं है अथवा जमीन का प्रयोग सरकार द्वारा पूर्व से निर्धारित हो और उस उद्देश्य से भिन्न उद्देश्य के लिए प्रयोग वर्जित हो। वकील यह भी बतायेगा। वकील यह भी बताएगा कि जमीन पर कोई गिरवी आदि तो नहीं है, नन इंकम्ब्रेन्स, सरकारी मूल्य आदि के बारे में जानकारी देगा। वकील केवल सलाह देगा। वह बाध्यता कारी नहीं है, उसके प्रमाणित और अंतिम सत्य होने का कोई गारन्टी नहीं। आप अन्य स्रोत से भी जानकारी को सम्पुष्ट कर लें।
यदि लिखित में सलाह, जानकारी, सम्बंधित दस्तावेज की प्रमाणिक नकल ले लेंगे तो विवाद की स्थिति में कोई यह नहीं कहेगा कि आप स्वयं लापरवाह थे। आप क्लेम कर सकेंगे कि मैंने उचित सावधानी बरती और due diligence भी बरता। न्यायालय आपकी सदाशयता से हो सकने वाला लाभ शायद दे सकेगा।
भारत में नवोन्मेषी प्रयोगधर्मी चैतन्य मस्तिष्क को सम्मान नहीं मिलता है।
शुद्ध खोजी प्रकृति को लोग बाग बर्दास्त ही नहीं कर पाते। हर जगह लालफीताशाही और यथास्थिति वादी।
भारत में सम्भवतः पहले से लिखी, सोची, प्रमाणित बातों , तथ्यों, स्थापना के आगे बढ़ कर सोचने, करने वाले को स्वीकार करने में बहुत अधिक और निम्न स्तरीय प्रतिरोध होता है।
यह प्रतिरोध उत्साह की हत्या कर देता है, कई बार घृणित हो जाता है।
मशीनों, वस्तओं,पदार्थों पर ही निवेश करते है, आविष्कार परियोजना, प्रयोगों, अनुसन्धानों, अनुसन्धान तकनीकों पर निवेश के लिये आगे नहीं आते, अनुसन्धान का बजट वहुत कम है, R n D पर घ्यान नहीं दे पाते।
बौद्धिक संपदा संरक्षण के मामले में हम बहुत पीछे है। हमारा समाज अभी भी बैद्धिक संपत्ति के विकास, नियमतिकरण, मूल्य महत्व आदि को नहीं समझ पा रहा।
बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर आवश्यक निवेश बहुत कम है।
यदि वन टाइम निवेश कर भी दिया जाता है तो उसका रख रखाव एकदम अविश्वसनीय घटिया तरीके से है। केवल बर्बादी है।
सहायक मानव संसाधन अत्यंत गैर जिम्मेवार है।
मानव मेधा की सफलता का लाभ तो ले सकते है पर हानि उठाने को समाज तैयार नहीं है।
अनुसंधानकर्ताओं, योजना तैयार करने वालों से अधिक सम्मान मैनेजर को दिया जाता है।
भारत का उद्यमी पढ़े लिखे बौद्धिक दिमाग को मजदूर समझ उसे उचित प्रोत्साहन, पारिश्रमिक नहों देते।
सरकार का अपना बजट कम तो है ही है, जो है भी वह समुचित प्रतिभाओं को खोजने , उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाय भाईभतीजावद और निजी स्वार्थों की भेंट चढ़ जाता है।
अवसरों की राजनैतिक बंदरबांट हो जाती है।
समर्थ के लिये अवसर को अयोग्य से भर दिया जाता है। समर्थ निराश और कुंद हो बाहर जाने को विवश होता है। वास्तविक प्रतिभा के साथ समय पर सहयोग नहीं हो पाता।
अतएव मेधावी नवोन्मेषी प्रयोगधर्मी प्रोत्साहन, संरक्षण, समुचित पारितोषिक और सम्मान, अवसर के अभाव में भारत के बाहर चले जाते है।
क्यूरेटिव वकीलों द्वारा ईजाद किया शब्द है जिसे किसी वकील ने किसी मुकदमें में हार जाने के बाद भी पेटिशन दिया।
अब यह न तो अपील थी, न रिवीजन, न रिव्यू, न रिट, तो उसने अपने पेटिशन का नाम ही रख दिया कि यह क्यूरेटिव पिटीशन है और कोर्ट ने इसी नाम को लिख कर खारिज कर दिया।
बस क्यूरेटिव पिटीशन की नींव पड़ गयी।
एक और प्रयास के लिये पेटिशन देने से तो नहीं रोक सकते।
मरता क्या नहीं करता।
एक और प्रयास।
कभी कभी भारी कोस्ट भी लग जाती है।
मवक्किल को बताया जा चुका है।
मवक्किल तो हार ही चुका है।
हारने के बाद अपील, रिवीजन, रिव्यू, रिट यही सब न रास्ता है।
वकील ने वह सब भी किया।
वकील न तथ्यों को बदलेगा, न कानून को।
अपने मवक्किल की उम्मीद के अनुसार कोर्ट से एक आदेश लेने का प्रयास करेगा यदि मवक्किल वकील की फीस और परिणाम भुगतने को तैयार है।
वैसे भी परिणाम तो मवक्किल को ही भोगना है, वकील को तो फीस मिलेगी या यश, नाम, प्रसिद्धि।
बस जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो वकील फिर से कोई नई तर्क वुद्धि लगा, नई दलील लगा जब जबरदस्ती पेटिशन देता है तो इसको क्यूरेटिव पिटीशन , मर्सी पेटिशन, पेटिशन on ह्यूमेनुइटेरियन ग्राउंड आदि नाम देते रहता है, शायद बिल्ली के भाग्य से छीका टूट ही जाए।
जज डाँट भी देते है, गर्म भी हो जाते है, कोस्ट भी लगा देते है पर विनम्रता से वकील मवक्किल के प्रति अपना धर्म निबाहते है।
जज वकील का मालिक नहीं।
वकील की नियुक्ति ही ब्यक्ति के अधिकार के लिए राजा के सन्मुख भी निर्भय हो उपस्थित होने में लिये है।
हाँ, वकील का अपना केवल फीस भर से, यश या अपयश भर से ही मतलब है।
अधिकांश मुकदमों में वकील मवक्किल को केवल अपने प्रयासों का ही आश्वासन देता है, आदेश क्या होगा, वकील न जानता है, न आश्वासन देता है।क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीमकोर्ट के अपने क्षेत्राधिकार की चीज है। सुप्रीमकोर्ट अपने किसी भी निर्णय को कभी भी पुनः विचार कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट स्वयं ही इसकी रूपरेखा बनाता बदलता है, यह पूर्णतः सुप्रीमकोर्ट का विवेकाधिकार है।कौन जाने कभी कोई बात किसी जज को समझ मे आ ही जाये !! बस वकील लगातार इसी उम्मीद में भिन्न भिन्न लेबल लगा न्यायालय से प्रार्थना करते रहते है। दिन हो या रात, व्यक्ति के अधिकारों के लिये प्रार्थना होती है, खास कर जव ब्यक्ति के जीवन के अस्तित्व का ही प्रश्न हो, हाँ या ना के बीच मे झूलता जीवन, सुप्रीम कोर्ट से ही शायद कुछ मिल ही जाए, बस इसी उम्मीद में प्रयास।
भारतीय दंड विधान के वे प्रावधान अवश्य जाने जिनके कारण कोई कृत्य अपराध की परिभाषा से बाहर हो जाता है।
भारतीय दंड विधान की उन धाराओं को भी जाने जो आपके प्रत्यक्ष अपराध में लिप्त नहीं होने पर साथ, सहयोग, साधन, अपराध के पहले या अपराध के बाद में के आधार पर आपको भी अपराधी बना सकता है।
राष्ट्र हित में मौलिक कर्तव्यों का ज्ञान, पर हित मे सभी को प्राप्त मौलिक अधिकारों का ज्ञान और भारतीय संविधान की प्रस्तावना का हरदम ध्यान रखिये।
समसामयिक पर्यावरण कानून, सार्वजनिक यातायात, वाहन के कानून, जन्म मृत्यु , बैंक, टैक्स के साधारण कानून की जानकारी रखें।
जरूरत पड़ने पर कब किस शासकीय अधिकारी से आपको क्या अपेक्षा का अधिकार है, कैसे है कितना है और यह अपेक्षा पूर्ण न हो तो आपके उपचार कैसे प्राप्त कर सकेंगे इसकी प्राथमिक जानकारी आपको होनी चाहिये।
और हाँ, आपको पुलिस के अधिकारों की सीमा और पुलिस के प्रति अपने कर्तव्यों की भी जानकारी होनी ही चाहिये।
चमड़े की जबान, कल्पना की उड़ान, कल्मघिससु का ख्वाब, राजा का जबाब, इन सबका कभी कोई भरोसा नहीं, कब किधर बहक जाए।
ये कई बार, बार बार केवल सनक, पिनक में बहकती रहती है।
इनका भरोसा न करे।
जब सब कुछ का प्रमाण इतिहास भूगोल खत्म हो चुका होता है तब ये सब सपनाते है, बौआते है औऱ हवा में जिन्न पैदा कर उससे लड़ते है या लड़ने का नाटक करते दिखते है।
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