Wednesday, 11 September 2019

मेरी बेरुखी आज अखर गयी तुझे
जरा सोच उन घावों का दर्द कैसा था ?
जब ओठ दबा दबा तुम हँसते थे
उन निगाहों के जख्म बहुत गहरे थे।
जब मेरी दो रोटियाँ भी गिनी जाती थी
जरा सोच मेरी भूख सौ बार मर जाती थी

No comments:

Post a Comment