हद हो गई। समाज चलता गया पर कानून वहीं के वहीं । मूल्य बदल चुके हैं । परिस्थतियों नें स्पष्ट बदलाव है । समय, सोच, , साथ सब कुछ बदल गयें। और हद तो यह है कि कानूनविदों का सोच वही, कम से कम दूसरों के मुकदमों के लिये बहस करते समय या निर्णय करते समय वही आँखों पर पट्टी------ क्यों नहीं भविष्य को देखते ये लोग---क्या इतिहास ही सब कुछ है----- भावी पीढ़ी के लिये हमारे पास देने के लिये भविष्य क्यों नहीं है । क्यों हमें हमारे अनुभवों पर ही अकेले भरोसा हे- क्या हमारे अनुभवों के बाद नये अनुभव होने बंद हो जायेंगें- नई पीढ़ी हमसे अधिक समझदार होगी, यह मानने में आपको या मुझे क्यौं झिझक् होती है । सच मानीये, आप भी अपने से पहले कि पीढ़ियों को नकारते हुए जवान हुए हैं- आपने भी नया बहुत कुछ किया, समाज को दिया, आपने अच्छा किया पर आपसे भी अच्छा आने वाली पीढ़ी करेगी, भरोसा रखिये
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