बीसियों
चिट्ठियाँ हर महिने लिखता रहा, एक का भी जबाब नहीं आया।
कभी मनीआर्डर
थोड़े ही मंगाया था।बस मैं अकेले याद कर लिया करता था। हो सकता है उन्होनें
मेरा खत पढ़ा ही न हो ।मुझे क्या, मैं तो खत लिखने से बाज आने से रहा।
पढ़ें या ना पढ़े, ये उनकी मर्जी । आज नहीं तो कल उन्हे जबाब देना पड़ेगा।
नहीं भी देंगें तो क्या मैं पत्र लिखना रोक दूँगा ।
पत्र मैं अपने मन से
लिखता हूँ, अपने मन से, किसी के कहे नहीं।
ह...र साँझ दीपक जलाता रहा हूँ- बिना किसी नागा। आँधी रही या तूफान, अपनी हथेलियों की ओट किये दीपक को और उसकी रौशनी को संभालता रहा ।
उम्मीद रहती है, आप आयेंगें, कहीं अंधेरे में आपको तकलीफ न हो। आप नहीं आये ।----आप नहीं आये। मैं ईन्तजार करता रहा। ।
हर साँझ दीपक जलाता रहूँगा- बिना किसी नागा।
आप आयेंगें- नहीं भी आये तो क्या। मैं गाँव के बाहर, पीपल के पेड़ के पास दीया लिये खड़ा रहूँगा, अंधकार से लड़ता दीया-अकेले प्रकाश देता दीया। दीया है तो बाती तो होगी ही- नहीं भी है तो ,मैं हूँ न।आपकी राह का अंधेरा मुझे नहीं सुहाता ।
ह...र साँझ दीपक जलाता रहा हूँ- बिना किसी नागा। आँधी रही या तूफान, अपनी हथेलियों की ओट किये दीपक को और उसकी रौशनी को संभालता रहा ।
उम्मीद रहती है, आप आयेंगें, कहीं अंधेरे में आपको तकलीफ न हो। आप नहीं आये ।----आप नहीं आये। मैं ईन्तजार करता रहा। ।
हर साँझ दीपक जलाता रहूँगा- बिना किसी नागा।
आप आयेंगें- नहीं भी आये तो क्या। मैं गाँव के बाहर, पीपल के पेड़ के पास दीया लिये खड़ा रहूँगा, अंधकार से लड़ता दीया-अकेले प्रकाश देता दीया। दीया है तो बाती तो होगी ही- नहीं भी है तो ,मैं हूँ न।आपकी राह का अंधेरा मुझे नहीं सुहाता ।
आप आयेंगें तो मुझे खुशी होगी। पर मैं ड्योढ़ी पर आपके
लिये रोज दीया जलाता रहूँगा,रहूँगा,रहूँगा,रहूँगा।
मेरे पास एक ही खिलौना बच गया है। उसे मैंने तूम्हारे लिये रख छोड़ा है। आओ न , खेलो उस खिलौने संग। मैंने आँगन भी साफ कर रखा है।हर बार खाना ठंडा हो जाता है, कोई बात नहीं आज नहीं कल आ जाना।
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