Saturday, 14 July 2018

शिक्षक की आंतरिक शक्ति, विद्या तक पहुँच बहुत कम की हो पाती है। एक तो यह दुर्गम है, दुर्लभ है, दुर्भेद्य है, पहचान में ही नहीं आती । शायद कुरूप, अरुचिकर, अनुचित स्वरूप लिए होती है। शायद शिक्षक की आंतरिक ज्ञान शक्ति  की सुरक्षा के लिए ही प्रकृति ने विशिष्ट ज्ञान को इस प्रकार आवेष्ठित कर रखा है। केवल विशेष प्रयास , अनुग्रह, लगाव, समर्पण, आकर्षण से ही प्राप्य है ।
इसका दिखता स्वरूप अप्रिय है पर प्रभाव, परिणाम सर्व विधि , सर्वकालिक  सभी के लिए अंततः मंगलकारी, सर्वभाँति प्रिय और शुभ।

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