लगता है , मैं शुरू से ही अत्यधिक आदर्शवादी रहा, मेरे क्रिया कलापों में सम्भवतः समुचित व्यवहारिकता की उपेक्षा थी, असम्भव से आदर्श की ओर चलने की मेरी ज़िद्द में मैं लगभग अप्रासंगिक से हो जाता था, अजीब प्रयोग अपने साथ करने लगता था, बहुत अच्छा, सबसे अच्छा, महान बनने की इच्छा, सर्वकालिक बनने का जनून, आदर्श स्थापित करके ही रहूंगा यह सब विचार मेरे ब्यक्तित्व का बचपन से ही हिस्सा था। शायद जिद्द। शायद नीडर। शायद प्रयोगवादी। वास्तविकता से बहुत दूर। सही ब्यवहारिक समझ की कमी।
शायद इसी कारण मेरी मां मेरी सफलता को लेकर आशंकित रहती थी।
शायद इसी को देख , सुन, समझ खोवाला जी भी घबराये रहते थे।शायद यह मेरी मौलिक कमजीरी थी।
आनुपातिकता की समझ कम थी। ब्यवहारिकता की कमी थी।
आज भी शायद है।
शायद इसी कारण मेरी मां मेरी सफलता को लेकर आशंकित रहती थी।
शायद इसी को देख , सुन, समझ खोवाला जी भी घबराये रहते थे।शायद यह मेरी मौलिक कमजीरी थी।
आनुपातिकता की समझ कम थी। ब्यवहारिकता की कमी थी।
आज भी शायद है।
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