खुद को देखते रहना, समझते रहना, छान बीन करते रहना, खोजते-खोदते रहना, उलटते पलटते रहना, बड़ा शर्म साध्य कार्य है, सावधानी से बिना थके रुके करते रहना पड़ता है।
एक बार की सफाई पर्याप्त नहीं होती। लगातार वही क्रिया, लगभग नियमित रूप से, बिना ऊबे करनी पड़ती है।
इसका जो भी जांच फलाफल होता है उसे स्वयं को ही बताना समझना, समझाना पड़ता है।
उसे सार्वजनिक भी करना पड़ता है। उसकी प्रतिक्रियाओं को झेलना, समझना पड़ेगा ही।
एक बार की सफाई पर्याप्त नहीं होती। लगातार वही क्रिया, लगभग नियमित रूप से, बिना ऊबे करनी पड़ती है।
इसका जो भी जांच फलाफल होता है उसे स्वयं को ही बताना समझना, समझाना पड़ता है।
उसे सार्वजनिक भी करना पड़ता है। उसकी प्रतिक्रियाओं को झेलना, समझना पड़ेगा ही।
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