Sunday, 15 July 2018

समुद्र वही रहा, नदी वही रही, जंगल वही था । जिसने जो चाहा सो लिया, सो मिला। किसी ने जंगल मे अनमोल जड़ी बूटी , ध्यान, ज्ञान, विज्ञान, खोजा। कोई वहाँ शिकार खोजता रहा। किसी ने खनिज, रत्न, जल स्रोत खोजे। कुछ जंगलों को अपराध कर्म के लिये सुरक्षित स्थान समझ सन्तुष्ट हुआ। कितनों ने ऊसर जंगली जमीन को उपजाऊ खेत में बदल लिया।
कोई समुद्र तल तक मोती माणिक, मूंगा, प्रवाल, खोजते रहा। कोई मत्स्य धन तक सीमित रहा। कितने किनारे के शंख आदि ही चुनते रहे।कुछ ने समुद्र किनारे ही अपराध की आधारशिला, प्रयोगशाला बना डाली।
अपनी अपनी फितरत।
नदियों का भी वही हाल।
हम आप अपने बड़े से इसी प्रकार ब्यवहार  करते रहते है।
जिसने जितना समझा, किया, सब अपनी समझ से किया।

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